वसूली पर सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले की समीक्षा से इनकार कर दिया, जिसमें दिल्ली-नोएडा-डायरेक्ट यानी डीएनडी फ्लाईओवर को दैनिक यात्रियों के लिए शुल्क मुक्त रखने का आदेश दिया गया था।
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पीठ ने दिसंबर 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के डीएनडी फ्लाईओवर को टोल-फ्री करने के फैसले को भी बरकरार रखा। साथ ही नोएडा प्राधीकरण समेत उप्र व दिल्ली सरकारों की आलोचना करते हुए सत्ता के दुरुपयोग व जनता के विश्वास के उल्लंघन द्वारा इसकी अंतरआत्मा को ठेस पहुंचाने की बात भी की। नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड की अपील को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था, कंपनी ने परियोजना की लागत और पर्याप्त लाभ वसूल लिया है।
जिससे उपयोगकर्ता शुल्क या टोल लगातार लगाने या वसूलने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। यह देश का पहला आठ लेन चौड़ा व तकरीबन नौ किलोमीटर लंबा एक्सेस-कंट्रोल एक्सप्रेस-वे है, जो दिल्ली के महारानी बाग व निजामुद्दीन इलाकों को नोएडा से सीधा जोड़ता है, जिससे यात्रा में लगने वाले समय में काफी कटौती होती है। 2001 में जब इसका उद्घाटन हुआ था तो पहले वाहनचालकों को यह टोल काफी ज्यादा लगता था।
मगर समय व ईधन की बचत के चलते यह नियमित यात्रियों के लिए बेहद सुविधाजनक बनता चला गया। प्राधिकरण व कंपनी की मिलीभगत के कारण लंबे अरसे तक टोल वसूली जारी रही। मामला जब अदालत में गया तो दोनों की तरफ से अलग-अलग दलीलें दी गई। मगर उस वक्त ही सबसे बड़ी अदालत ने प्राधिकरण द्वारा कंपनी से रियायत समझौतों के माध्यम से किए गए अनुबंध को अनुचित, अन्यायपूर्ण व संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप नहीं बताया था।
अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए प्राधिकरण ने शुल्क के निर्धारण, संग्रह व विनियोजन का नियंत्रण दिया था, उसे अदालत ने कानूनन अवैध ठहराया था। प्राधिकरण की मिलीभगत के चलते इस तरह का नुकसान केवल आम नागरिक ही नहीं भुगतता बल्कि राजस्व में भी नुकसान होता है। यूं भी एनसीआर से रोजाना यात्रा करने वालों से की जाने वाली वसूली निंदनीय ही कही जाएगी। माल-बंटवारे या अन्य किसी लोभ के अदालत का कीमती वक्त जाया करने वालों से मुआवजे की वसूली भी की जानी जरूरी है। जो न सिर्फ अपनी गलती स्वीकारने को राजी हैं, बल्कि बिला-वजह पुनर्विचार की अपेक्षा भी कर रहे हैं।
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