पटाखों के खिलाफ मुस्तैदी
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर सख्ती से प्रतिबंध लगाने को कहा है वरना अवमानना की कार्रवाई होगी।
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अदालत ने उप्र, राजस्थान और हरियाणा सरकार से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत निर्देश जारी करने को कहा है, जिसमें पटाखों का निर्माण, बिक्री, भंडारण और ऑनलाइन उपलब्धता पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। कोर्ट ने ईपीए की धारा 5 के तहत जारी निर्देशों को राज्यों के सभी कानून प्रवर्तन तंत्रों के माध्यम से सख्ती से लागू करने की बात की। पटाखों को पूर्णतया प्रतिबंधित करने के बावजूद विभिन्न त्योहारों और हर्षोल्लास वाले मौकों पर आतिशबाजी रोकने में सरकार बुरी तरह असफल नजर आ रही है।
वायु, जल, कचरा, उद्योग से पहले ही प्रदूषण बहुत है, जिसमें मिल कर पटाखा प्रदूषण मानव जीवन के लिए खतरा बढ़ाने वाला साबित होता है। पटाखा उत्पादन में भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है, जिसमें सबसे ज्यादा पटाखे (तकरीबन 85%) तमिलनाडु के शिवकाशी में बनते हैं। वहां पांच सौ से अधिक इकाइयों में छोटे-बड़े पटाखों का निर्माण होता है। शीर्ष अदालत पहले भी दिल्ली एनसीआर ही नहीं, बल्कि पूरे देश में पटाखों पर रोक लगाने की बात कह चुकी है।
बावजूद पटाखों की बिक्री साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। अंदाजे के अनुसार, गये साल पटाखों की खुदरा बिक्री छह हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। उप्र, बिहार और गुजरात में इनकी जबरदस्त मांग है। पटाखे जलाने और इनसे पर्यावरण को नुकसान को लेकर जनजागरूकता जरूरी है। हालांकि इसमें प्रसिद्ध शख्सियतों समेत राजनीतिक हस्तियों और बड़े दलों को आगे आना होगा और उनके यहां होने वाले उत्सवों/हर्षोन्माद के दौरान पटाखों को सख्ती से प्रतिबंधित करना होगा।
पटाखा उद्योग ने बेशक, लाखों लोगों को रोजगार दिया है, मगर उसे सीमित किए बगैर आतिशबाजी की बिक्री थामना दुष्कर होगा। प्रदूषण के चलते होने वाले घातक रोगों की रोकथाम के लिए आवश्यक है कि कुछ कड़े कदम फौरन उठाए जाएं। अदालत की बार-बार घुड़की के बावजूद सरकारों और प्रशासन के कानों में जूं रेंगती नहीं नजर आ रही, बल्कि जब भी पटाखों के खिलाफ अभिायान चलाया जाता है, या कोई शख्सियत आवाज उठाती है, तो जनता उल्टा उस पर कटाक्ष करने और ट्रोलिंग करने पर उतारू हो जाती है। युवाओं और किशोरों के बीच पटाखों के दुष्परिणामों पर खुल कर चर्चा हो और राज्य सरकारों पर पटाखों के पूर्ण-प्रतिबंध पर केंद्र मुस्तैद हो।
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