आरक्षण ट्रेन की तरह

Last Updated 08 May 2025 01:40:07 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने देश में आरक्षण की तुलना ट्रेन से करते हुए कहा है कि जो लोग डिब्बे में चढ़ जाते हैं, ‘वे नहीं चाहते कि दूसरे अंदर आएं।’


आरक्षण ट्रेन की तरह

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिर सिंह की पीठ ने महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण का विरोध करने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए मंगलवार को यह टिप्पणी की। दरअसल, यह याचिका स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण बिना यह पता लगाए दिए जाने के खिलाफ थी कि आरक्षण पाने वाले राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं, भी या नहीं।

इस पर शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि देश में आरक्षण का धंधा ट्रेन की तरह हो गया है। जो रेलगाड़ी के डिब्बे में चढ़ गए हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और अंदर आए। यही पूरा खेल है। याचिका डालने वाले का भी यही खेल है। याचिकाकर्ता मंगेश शंकर सासाने ने कहा कि राजनैतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन से अलग है, और ओबीसी को स्वयंमेव राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता है। ओबीसी के भीतर आरक्षण के उद्देश्य से राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वगरे को पहचाना जाना चाहिए। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जब कोई समावेशिता के सिद्धांत का पालन करता है, तो राज्यों को अधिक वर्ग की पहचान करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। 

सामाजिक रूप से, राजनीतिक रूप से और आर्थिक रूप से कोई पिछड़ा होगा तो उसे लाभ से वंचित क्यों किया जाना चाहिए। आरक्षण का मुद्दा देश में इस कदर संवेदनशील हो चुका है कि समाज में अलगाव और असंतोष का जब-तब रूप लेता दिखाई पड़ा है। ओबीसी में क्रीमी लेयर का मसला भी इसी के चलते से उभरा है। अनेक जातियां और सामाजिक समूह भी आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करने लगे हैं।

दरअसल, जातिगत आरक्षण के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 16 की जरूरतों को पूरा करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से पीछे रह गई जातियों को आरक्षण का लाभ इसलिए दिया जाता है कि वे संविधान के समानता के सिद्धांत का लाभ उठा कर अन्य जातियों के बराबर आ जाएं। लेकिन समाज में आरक्षण को लेकर पनपे व्यापक असंतोष के चलते जब-तब पिछड़ेपन को फिर-फिर परिभाषित करने की नौबत आ ही जाती है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment