शहबाज शरीफ को विवशताओं का ताज

Last Updated 05 Mar 2024 01:25:08 PM IST

शहबाज शरीफ ने दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कमान संभाल ली है। इस बार सही मायनों में उनका ताज कांटों का है। इसलिए कि एक तो पूरा चुनाव ही विवादास्पद रहा है, तिस पर उसमें सेना का (प्रत्यक्ष?) सहयोग रहा है।


विवशताओं का ताज

अमेरिका इसी बिना पर शरीफ सरकार को मान्यता अटकाने पर अड़ा हुआ था, पर उसके राष्ट्रपति नहीं माने। दूसरे, शहबाज एक परस्पर विरोधी दलों के गठबंधनों में समझौते के तहत चुने गए प्रधानमंत्री हैं।

इसके तहत, गठबंधन की समर्थक और दूसरी बड़ी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता और 11 साल की सजा काटे आसिफ अली जरदारी को राष्ट्रपति बनाया जाना है। यह चुनाव जल्द ही होना है। तो इस तरह से शहबाज के दोनों हाथ पहले से ही बांध कर कुर्सी पर बिठाया गया है।

माना जाता है कि इन्हीं स्थितियों में नवाज शरीफ नेतृत्व करने से पीछे हटे हैं। वे पाकिस्तान के लिए कड़े फैसले लेने लायक बहुमत से हासिल एक खुला मैदान चाहते थे, जो नहीं मिला है। दूसरे, सेना की सेना और गठबंधन-दलों की वे स्वाभाविक पसंद नहीं थे। शहबाज सेना के आगे मुंह नहीं खोलने और साझीदार दलों के लिए मुफीद समझे गए। इस वजह से वे ‘अनिच्छुक’ होते भी बड़े भाई से बाजी मार ले गए।

पर पाकिस्तान की अस्थिर आंतरिक स्थितियां, भयावह वित्तीय स्थितियां और धराशायी क्षेत्रीय-अंतरराष्ट्रीय साख, वस्तुओं के आसमान छूते दामों से लोगों को मार डालने वाली महंगाई को वस्तुओं की आपूर्ति से पाटने की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। वहीं सदन और उसके बाहर इमरान खान का तगड़ा विपक्ष उन्हें आराम से बैठने देने के मूड में नहीं है। वे दैनंदिनी स्तर पर विवशताओं से घिरे हैं प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें पाकिस्तान को एक विफल देश से बाहर निकालने का कर्त्तव्य है।

पर इसकी इजाजत के लिए उन्हें सेना को खुश करने वाली भारत विरोधी समेत तमाम बातें करनी हैं और वैसी परिस्थितियां निर्मिंत करनी हैं तो गठबंधन की कड़ी परीक्षा लेने वाले धर्म का भी निर्वाह करना है। इसलिए उन्हें भारत से भिड़ने और कठमुल्लेपन के पोषण की बात रोजाना स्तर पर करनी होगी जबकि उन्हें यथाशीघ्र पाकिस्तान को एक सामान्य स्थिति की ओर ले जाना चाहिए।

यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे देश के ऐतिहासिक सामाजिक और आर्थिक संकटों से निपटने का प्रयास करते समय बढ़ती राजनीतिक खाई को पाटें। शहबाज को सेना या गठबंधन इसकी छूट कहां तक देगा, यह समय बताएगा। फिलहाल, उनके नए कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं।



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