सेना वापसी पर सहमति

Last Updated 26 Aug 2023 01:36:17 PM IST

लद्दाख (Ladakh) में चीन (China) के साथ विगत तीन वर्षो से चली आ रही तनातनी के बीच राहत की अच्छी खबर है। जैसी कि उम्मीद थी, जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit in Johannesburg) के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) के बीच संक्षिप्त पर सार्थक बात हुई है।


सेना वापसी पर सहमति

इस अनौपचारिक बातचीत में,जैसा कि कहा गया है,प्रधानमंत्री मोदी ने जिनपिंग को समझाया कि वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान करने और वहां शांति बनाने पर ही द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होगा।

इसका मतलब है कि चीन जो एलएसी क्रॉस कर डेमचक और देप्सांग में घुस आया है, वह उससे तो आगे नहीं ही बढ़े बल्कि उन इलाकों को खाली भी करे। शांति बनाए रखने का मतलब अत्याधुनिक हथियारों से लैस उसके हजारों हजार सैनिक वहां से चले जाएं।

यानी दोनों देशों की सेना शांतिकाल की पोजीशन पर रहे। यही डि-एक्सलेशन और डिस-इंगेजमेंट है। इस परस्पर सहमति बनाने के बारे में सेना काम करेगी। हालांकि यथास्थिति बहाली एक धीमी और लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया होती है। चीन के साथ ऐसा रिकॉर्ड रहा है, जब 1986-87 के सुमदोरोंग चू टकराव के बाद राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के समय शुरू हुई बातचीत पीवी नरसिंहराव (PV Navsimharao) के जमाने में खत्म हुई थी। इसलिए यह काम कब से शुरू होगा, इसे ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता।

पर यहां न तो युद्ध है और न शांति है तो इसकी निर्थकता को दोनों देश समझने लगे हैं। वे कुछ क्षेत्रों में लौटे भी हैं। इसलिए शी जिनपिंग से ताजा बातचीत के बाद इस दिशा में नई राह खुलने की उम्मीद है। यह काम शुरू होने की स्थिति में भारत को पहले डेमचक से चीनी सेना की वापसी की मांग करनी चाहिए। यहां के भारतीय इलाके में चीनी सैनिक कुछेक टेंट तैनात हैं।

फिर उसे देपसांग की 16 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात चीनी सैनिकों की वापसी पर बात करनी चाहिए। यहां चीनी सैनिक 18 किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुसे हुए हैं और वे भारतीय गश्ती का विरोध करते हैं। एक संभावना यह है कि भारत-चीन सीमा पर युद्धविहिन भूमि रेखांकित करें और उसके आर-पार गश्ती पर सहमत हों। आंतरिक दबावों के चलते चीन इस नतीजे के बहुत नजदीक आ सकता है। विवाद हल करने के लिए विश्वास बहाली प्रक्रिया पर उसका जोर देने और कम अंतराल पर बातचीत की तत्परता से यह जाहिर होता है। भारत भी यही चाहता है।



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