पारंपरिक चिकित्सा की जरूरत
भारत में योग सहित आयुर्वेद के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा का समृद्ध इतिहास है जो बीमारियों को कम करने में प्रभावी साबित हुआ है।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. ट्रेडोस घेब्रेयेसस ने पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन में यह कहा। उन्होंने कहा, योग सहित आयुर्वेद के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का समृद्ध इतिहास है जिसे दर्द कम करने में प्रभावी पाया गया।
पारंपरिक चिकित्सा को मानवता के बराबर पुराना बताते हुए उन्होंने सभी देशों व संस्कृतियों में लोगों ने इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सकों, उपचारों व प्राचीन दवाओं-औषधीय ज्ञान का प्रयोग करने की भी बात की। स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों तथा पारंपरिक चिकित्सा से जुड़े लोगों समेत सम्मेलन में नब्बे से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं। सिर्फ अपने यहां ही नहीं, दुनिया भर की संस्कृतियों में प्रचलित रहीं चिकित्सा पद्धितियां उपेक्षित होते हुए धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं।
योग व आयुर्वेद को लेकर अपने यहां थोड़ी जागरूकता बढ रही है। प्राचीन भारत में चरक संहिता में आयुर्वेदिक उपचार की दो हजार औषधीय जड़ी-बूटियों व उनके प्रयोग की चर्चा है। हमारे परिवारों में जिन घरेलू उपचारों का चलन पीढ़ियों से होता रहा है, अब आधुनिक चिकित्सा पद्धिति उन्हें भी स्वीकार रही है।
उचित व सटीक शिक्षा के अभाव में आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी जैसी तमाम प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों से लोगों का विश्वास उठता चला गया। आधुनिक चिकित्साध्ययनों की तरह यदि इन माध्यमों में भी लगातार अध्ययन जारी रहते तो आज यह स्थिति कतई ना होती।
केंद्र सरकार की पहल पर योग जिस तरह सारी दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने में सफल रहा उसी तरह पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को पहचान दिलाई जा सकती है। इन्हें लेकर गहन अध्ययन के साथ ही उचित मापकों में औषधियों का उत्पादन/प्रसार किया जाए।
झोलाछाप व धोखेबाजी का चोला ढांप कर इलाज का दावा करने वालों पर सख्ती हो क्योंकि ये प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों के नाम की आड़ में उन्हें बदनाम ज्यादा करते हैं। विश्व चिकित्सा समुदाय मिल-जुल कर विलुप्ति की कगार पर खड़ी इन पारंपरिक चिकित्सा विधियों के प्रचार/प्रसार का जिम्मा ले तो इससे मानव जाति का भला हो सकेगा।
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