आजादी का जन गण मन

Last Updated 15 Aug 2023 01:43:51 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की पहल ने स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस समारोहों को वास्तविक अथरे में जनगणमय कर दिया है।


आजादी का जन गण मन

उन्होंने आज लालकिले में आयोजित होने वाले आजादी के महोत्सव एवं विजयपथ पर होने वाले परेडों में देश के गुमनाम, बगैर हैसियत वाले और प्रभुवगोर्ं द्वारा हाशिए पर धकेले गए 1800 लोगों को जीवनसाथी समेत सम्मानित अतिथि के रूप में बुलाया है। ये लोग हैं-संसद भवन एवं सीमा सड़क बनाने वाले मजदूर, किसान, शिक्षक, नर्स, सरपंच, हर घर नल-जल पहुंचाने वाले,अमृत सरोवर बनाने वाले, आजादी का वस्त्र कही जाने वाली खादी से जुड़े कार्यकर्ता आदि।

अति साधारण वर्ग से आने वाले ये वे धूल-धूसरित चेहरे हैं, जिनके लिए सभी पार्टियां आजादी से लेकर आज भी नारे जमीन पर गढ़ती हैं और आसमान में उछालती हैं। पर उनमें से कई दलों एवं उनके गठबंधन की सरकारों को यह होश नहीं रहा कि वे इन मौकों पर न्योते जाने वाले विदेशी, राजनयिकों, नेताओं, विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्यों या धनिकों की सजी-धजी विशिष्ट पंक्ति में भारतमाता के इन सपूतों को भी आदर से बुलाएं एवं उन्हें भी वैसा आसन दें। भले ही ये सरकारें गरीब किसानों और मजदूरों के लिए सितारे ला देने के संकल्प पर सत्तासीन हुई हों। तो इनके बिना ऐसे राष्ट्रीय समारोह भव्य-गरिमामय हो कर भी कुछ अधूरे रह जाते थे।

हालांकि ये लोग फिर भी इन समारोहों में उत्साह से हिस्सा लेते, तालियों से तथा मंच से लगाए जाने वाले नारों में अपना दोगुना जोश भरते रहे हैं। पर उन्हें सरकार की तरफ से ऐसे मौकों पर सादर बुलाने लायक न समझे जाने का मलाल तो होता ही रहा है। अब मोदी सरकार की तरफ से दिया गया यह सम्मान इन लोगों को,और इस बहाने रखी जा रही स्वस्थ परम्परा,आम जन को भी इस विास से भरेगा कि वे सब आजाद भारत की अस्मिता-अस्तित्व का सक्रिय हिस्सा हैं।

उनका यह योगदान राष्ट्र के कर्णधारों से ओझल नहीं है। यह आजादी का अमृत महोत्सव मनाने वाले देश में उत्पादकता बढ़ाने वाला एक नैतिक तत्व है। इसकी समावेशी भारत के गतिशील निर्माण में बहुत जरूरत है। इसके साथ ही मोदी सरकार-ऐसी परम्परा निबाहने की इच्छुक भावी सरकारों-को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इन नामालूम वगरें के लायक जीवनस्तर कैसे मुहैया कराएं। उनके लिए ऐसे कार्यक्रम बनाए जाएं और जो पहले से हैं, उनमें इनोवेशन किया जाए। इसके बिना ऐसे प्रयास राजनीतिक प्रहसन होकर रह जाते हैं। लोग अपने को पहले की तरह ठगा महसूस करते हैं।



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