पायरेसी पर लगाम
चलचित्र संशोधन विधेयक, 2023 को संसद में मंजूरी मिल गयी जिसमें फिल्म उद्योग में पायरेसी पर नियंत्रण संबंधी प्रावधान हैं।
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इस विधेयक के बाद तीन लाख रुपये का जुर्माना व अधिकतम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है। सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने संसद में बताया कि पायरेसी के कारण फिल्म उद्योग को हर साल बीस से बाइस हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। फिल्म वाले लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। आज दुनिया की बड़ी से बड़ी फिल्मों का पोस्ट-प्रोडक्शन काम भी भारत में हो रहा है। ऐसे में फिल्म उद्योग को बड़े अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।
अनधिकृत रिकॉर्डिग निषेध के लिए 1952 में नयी धारा 6एए डाल कर लेखक या निर्माता की अनुमति के बगैर फिल्म की न तो प्रति बनायी जा सकेगी, न ही उसका प्रसारण हो सकेगा। अपना फिल्म उद्योग 110 साल पुराना है, जिसे दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने का गौरव भी प्राप्त है। परंतु पायरेसी के कारण इसे बहुत नुकसान झेलना पड़ता है। सिनेमा माध्यम, उसके उपकरणों, प्रौद्योगिकी के साथ ही दर्शकों की रुचियों में वक्त के साथ तेजी से बदलाव आ रहा है।
नयी तकनीक के चलते फिल्म जगत में आ रहे बदलावों के साथ ही नयी डिजिटल प्रौद्योगिकी भी तब्दील होती जा रही है। इंटरनेट के बढ़ते प्रसार ने फिल्मों के लिए खासी चुनौती खड़ी कर दी है। पायरेटेड कॉपी कई दफा फिल्म के सिनेमाघरों में पहुंचने से पहले ही इंटरनेट में मौजूद होती है जो फिल्म उद्योग को आर्थिक क्षति तो पहुंचाती ही है साथ ही सरकार को टैक्स आदि से होने वाली आमदनी पर भी भारी नुकसान होता है। फिल्म निर्माण में अच्छी खासी धन राशि खर्च होती है।
ढेरों लोगों का भविष्य दांव पर लगा होता है। कई दफा फिल्म की रिलीज से पूर्व या बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की बेहतर शुरुआत के दौरान ही पायरेटेड वर्जन के प्रसारित होते ही उनका नुकसान शुरू हो जाता है। पायरेसी अपने ही देश में नहीं होती बल्कि दुनिया के बड़े-बड़े सिनेमा उद्योग इससे जूझ रहे हैं।
इंटरनेट पर कुछ ऐसे बड़े प्लेटफॉर्म भी मौजूद हैं, जिनका काम सिर्फ पायरेटेड फिल्में रिलीज करना ही है। आरोप तो यह भी लगते हैं कि कुछ निर्माण मंडली से जुड़े बड़े लोग भी इस चोरी का हिस्सा होते हैं। बावजूद इस सबके इस कानून का लाभ सिनेमा जगत किस तरह और कितना उठा पाता है, यह तो वक्त ही बताएगा।
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