बलिया, बिहार और ओडिशा समेत कई राज्यों में लू का कहर
फिलहाल देश आपदा की मार झेल रहा है। उत्तर प्रदेश के बलिया, बिहार और ओडिशा समेत कई राज्यों में आसमान से बरसती आग में झुलस कर लोग दम तोड़ रहे हैं।
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अपुष्ट अनुमान के मुताबिक लगभग 150 लोग मरे हैं, तो बलिया में हीटस्ट्रोक से 400 लोग बीमार हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते हो रहीं इन अतिमौसमी घटनाओं में जान-माल की इतनी संख्या में हुई क्षति ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के सरकारी इंतजामों की अनुपलब्धता पर सरकारों को कठघरे में खड़ा किया जाने लगा है। बलिया में एक चिकित्सा अधिकारी ने पिछले चार दिनों में लू लगने से 122 लोगों की जानें जाने की बात कह दी।
अब सरकार ने विशेषज्ञों की एक टीम जांचने के लिए भेजी है कि ये मौतें उस अधिकारी के दावे के मुताबिक हुई या इसकी अन्य कोई वजह-मसलन रोगादि-तो नहीं है। वस्तुस्थिति को जानना चाहिए पर जांच किसी नतीजे पर पहुंचती कि एक आधिकारिक टिप्पणी की गई-बलिया में सभी मौतें लू लगने से ही नहीं हुई हैं। ऐसा कैसे कहा जा सकता है? यह डैमेज कंट्रोल की एक जानी-पहचानी कवायद लगती है। इसलिए भी कि हिन्दी पट्टी के सूबों में प्राथमिक केंद्रों की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है-मानव संसाधनों की कमी से लेकर वहां अपर्याप्त भौतिक उपकरण एवं दवाओं के नदारद रहने तक में यही बात है।
ऐसे में सरकारों के प्रयास भी अतिमौसमी घटनाओं को सम्हालने में ही लचर नहीं दिखते, बल्कि आम दिनों में मरीजों की देखभाल तक में दिखते हैं। इसके लिए जनस्वास्थ्य के प्रति सजग दायित्वबोध एवं उसकी पूर्ति पर सतर्क निगरानी से बात बन सकती है। इसलिए कि कोविड-19 के भयावह दौर ने दिखाया है कि आने वाले समय में ऐसी किसी भी तरह की बड़ी आपदा में जनस्वास्थ्य की देखभाल का सबसे अधिक भार मझोले शहर या गांव-जवार पर ही पड़ने वाला है।
सरकारों को इस नजरिए से ही अपनी स्वास्थ्य वरीयता अभी से बनानी होगी। वैसे देखा जाए तो इंसानों की शारीरिक-मानसिक क्षमताओं पर व्यापक दुष्प्रभावों से उन्हें इस कदर बेदम-बेकस कर देने वाली आपदा को राज्य-जन-सहभागिता के आधार पर ही टाला जा सकता है। लू से बचाव के आसान आम उपाय यही हैं कि पानी खूब पीया जाए, घरों में या पेड़ों की छांव में रहा जाए-खासकर कमजोरों, बीमारों, बुजुगरे एवं बच्चों को तो घाम में निकलने ही न दिया जाए। पारा के 45 पार होने के बाद लोग-बाग इन तरकीबों से सरकार का बिना मुंह ताके भी बचे रह सकते हैं।
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