भारत-पाक बंटवारा : 75 साल बाद बिछुड़े हुए भाई-बहन मिले

Last Updated 24 May 2023 01:16:19 PM IST

भारत-पाक बंटवारे (Indo-Pak Partition) ने ढरों परिवारों को अलग कर दिया था। करतारपुर गलियारे (kartarpur corridor) में 75 साल बाद ऐसे ही बिछुड़े हुए भाई-बहन मिले।


भारत-पाक बंटवारा : 75 साल बाद बिछुड़े हुए भाई-बहन मिले

81 साल की भारतीय महेंद्र कौर (Mahendra Kaur) और पाकिस्तान के कब्जे वाले वाले कश्मीर के रहने वाले 78 वर्षीय शेख अब्दुल अजीज (Sheikh Abdul Aziz) ने एक-दूसरे का स्वागत किया, मिठाई खिलाई।

1947 में विभाजन के दौरान दोनों बिछड़ गये थे। एक सोशल मीडिया पोस्ट के चलते दोनों ने एक-दूसरे को गीली आंखों से गले लगाया। दोनों के परिवार ने करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब में माथा टेका।

इधर कुछ सालों से सोशल मीडिया पोस्टों व सोशल मीडिया पर चल रहे स्थानीय कार्यक्रमों के मार्फत कई बिछड़े परिवारों का मिलन हुआ है। जो भाई या बहनें आपस मिले, उनमें से कई तो मान चुके थे कि वे जीवित नहीं हैं। भारत-पाक विभाजन ने देश तो बांटा ही था, पंजाब के भी दो टुकड़े हो गये थे। भारत के दो टुकड़े होते वक्त जो लोग भी मौजूद थे, उनके दिलों-दिमाग में वह खौफनाक मंजर ता-उम्र बना रहा। पिछत्तर सालों बाद, अब बहुत कम ऐसे बुजुर्ग जिन्दा ही रह गये। कमोवेश दोनों देशों के दरम्यान कभी रिश्ते इतने मधुर भी नहीं रह पाये कि सरकारी तौर पर इस तरह के प्रयास होते। बिछड़ने वाले परिवार अपने दर्द और शकोशुबह लिये ही दुनिया से चले गये।

रिश्ते, दिलों, प्यार और अपनेपन को रौंदने वाला यह बंटवारा परिवार के परिवार को मायूस कर गया। जुदा होने वालों के लिए यह भयानक सपने की तरह था। जहां ढेरों मांओं की गोदें सूनी हो गई, पत्नियां बेवा हो गई और भाई/बहन हमेशा के लिए बिछड़े ही नहीं थे बल्कि जान-माल का भी भारी नुकसान हुआ था।

मरने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि परिवार से जुदा होने वालों को आमतौर मृत ही मान लिया गया। बंटवारे के दौरान हुए दंगों में औरतों/लड़कियों को अगवा करने और उनके बलात्कार की भी बहुत घटनाएं हुई थीं। उन बच्चियों का तो नाम भी परिवार जुबान पर लाने से कतराते थे। दुनिया भर में देश की सीमाओं के बंटवारे से बिछड़े परिवारों पर बेहतरीन फिल्में बनी हैं, इस पर साहित्य भी खूब रचा गया।

मगर जो बिछड़े भाई/बहनों से अब मिल पा रहे हैं, उनकी मनोदशा का अहसास किया जा सकता है जिनके लिए सरकारी तौर पर खास प्रयास नहीं किये गये। बावजूद इसके उन्होंने उम्मीदें नहीं छोड़ीं। उनके और उनके परिवार के हौंसलें और सहयोग से यह सीमा पार का भावात्मक मिलन संभव हुआ।



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