केंद्र सरकार के अध्यादेश के विरुद्ध विपक्षी एकता की मुहिम तेज

Last Updated 23 May 2023 01:32:14 PM IST

दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर पर केंद्र सरकार के अध्यादेश के विरुद्ध विपक्षी एकता की मुहिम तेज हो गई है।


विपक्षी एकता की धुरी

भाजपा के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के विरुद्ध अन्य राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाने के लिए सक्रिय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। पिछले 22 मई को सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया था कि दिल्ली का असली बॉस यहां की चुनी हुई सरकार है और अधिकारियों के पोस्टिंग और ट्रांसफर का उसे अधिकार है।

जाहिर है शीर्ष अदालत के इस फैसले से दिल्ली सरकार की जीत हुई थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाकर फिर से एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। हालांकि भारत के संसदीय इतिहास में इस तरह के अध्यादेश कोई नई बात नहीं है। पहले की सरकारें भी इस तरह के अध्यादेश लाया करती रही हैं। लेकिन वर्तमान समय में देश की राजनीतिक परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं।

भाजपा के राजनीतिक प्रभुत्व से विरोधी राजनीतिक दल सहमे हुए हैं और कांग्रेस सहित कुछ अन्य क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के विरुद्ध एक नया राजनीतिक गठबंधन बनाने के लिए प्रयासरत हैं। इस घटनाक्रम में यह महत्त्वपूर्ण सवाल एक बार फिर फिर से प्रासंगिक हो गया है कि अध्यादेश को केंद्र में रखकर विपक्षी एकता के जो प्रयास किए जा रहे हैं उसे कांग्रेस का समर्थन मिलेगा या नहीं। यह सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्ते सामान्य नहीं हैं।

आम आदमी पार्टी के नेता यह दावा करते रहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस का विकल्प वही दे सकते हैं। पिछले कुछ चुनावों का वोटिंग पैटर्न भी यही बताता है कि कांग्रेस जहां हार रही है वहां आम आदमी पार्टी ही उसका स्थान ले रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि केजरीवाल उन कुछ गैर-भाजपा दलो के नेताओं में शुमार हैं जिन्हें कर्नाटक में सिद्धारैमया के मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था।

केजरीवाल चाहते हैं कि अध्यादेश के सवाल पर कांग्रेस सहित सभी विरोधी दल उनका साथ दे और राज्य सभा में इसे पारित होने से रोक दिया जाए। अब देखना है कि इस मामले में किसको किसका साथ मिल रहा है और क्या कांग्रेस विपक्षी एकता की धुरी बनेगी? इसी मुद्दे पर भविष्य की राजनीति तय होगी।



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