UN में भारत ने की सुधार की वकालत

Last Updated 23 May 2023 01:28:38 PM IST

संयुक्त राष्ट्र (UN) में सुधार को लेकर बहस और विमर्श अरसे से चला आ रहा है। भारत (India) ने कई बार संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के विस्तार को लेकर वैश्विक मंच पर अपना पक्ष रखा।


सुधार की वकालत

इसके पांच स्थायी सदस्यों की संख्या को बढ़ाने का भी तर्क रखा, मगर हर बार उसे नकार दिया गया। अब हिरोशिमा (Hiroshima) में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Pm Narendra Modi) ने जिस तरह यूएन की कार्यशैली को लेकर तेवर तीखे किए हैं, उसे नजरअंदाज करना न्यायोचित नहीं माना जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने बिना लाग-लपेट के कहा कि संघर्ष को रोकने में संयुक्त राष्ट्र नाकाम है। साफ है कि मोदी विश्व के इस सबसे बड़े मंच में सुधार की बात कह रहे हैं। वैसे भी पिछली सदी में बनाई गई वैश्विक संस्थाओं को 21 सदी के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।

जब तक इसमें मौजूदा विश्व की वास्तविकता प्रतिबंबित नहीं होती, तब तक यह मंच महज चर्चा की एक जगह (टॉक शॉप) बना रहेगा। इससे पहले, 15 मई को पूर्व स्वीडन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि हर गुजरते साल के साथ संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े हो रहे हैंऔर इसकी बेहतरी के लिए इसमें सुधार होना चाहिए। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र को 1940 के दशक में बनाया गया था।

उस समय भारत चार्टर का मूल हस्ताक्षरकर्ता था, लेकिन तब वह एक स्वतंत्र देश नहीं था और उस समय पांच देशों ने एक तरह से खुद ही स्वयं को चुन लिया था। ये पांच देश आज भी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं। रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं और उनके पास वीटो का अधिकार है। इसके अलावा दो साल के कार्यकाल के लिए 10 अस्थायी सदस्यों का चयन किया जाता है। भारत का अस्थायी सदस्य के रूप में कार्यकाल पिछले साल दिसम्बर में पूरा हुआ था।

भारत सुरक्षा परिषद में सुधारों की लंबे समय से मांग करता रहा है। साफ है कि शांति बहाली के विचार के साथ शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र आज संघर्ष को रोक पाने में कतई समर्थ नहीं है। अस्तित्व में रहने के बावजूद संस्थाओं के शिथिल पड़े रहने से रूस-यूक्रेन समेत दुनिया में चल रहे तमाम संघर्ष को न तो खत्म किया जा सकता है और न सह अस्तित्व की वकालत की जा सकती है। दुनिया के उन देशों को भी इस बारे में संजीदगी से सोचना होगा। दुनिया बदल चुकी है, लिहाजा संस्थाओं में भी सुधार जरूरी है।



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