जातिगत जनगणना के निहितार्थ
देश में जातिगत जनगणना (caste census) के सवाल पर कांग्रेस (Congress) क्षेत्रीय दलों के साथ खड़ी हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्किार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) को चिट्ठी लिखकर जाति पर आधारित जनगणना शुरू करने की मांग की है।
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जनता दल (यू), राजद, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के अलावा दक्षिण भारत की द्रमुक भी जातिगत जनगणना का समर्थन कर रही हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक में पार्टी का चुनाव अभियान शुरू करते हुए न केवल जातीय आधारित जनगणना की मांग की बल्कि आरक्षण से 50 फीसद कैपिंग को हटाने की मांग भी कर दी।
कांग्रेस ने जातिगत आधार पर जनगणना के मुद्दे पर अपना जो स्टैंड लिया है उससे यह लगता है कि पार्टी आलाकमान ने यह मान लिया है कि अब अगड़ी जातियां कांग्रेस को अपना वोट नहीं देंगी। इसलिए अब कांग्रेस पार्टी ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों को टारगेट करने के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रही है।
भारत में अनेक जातियां और उनकी उपजातियां हैं। इनकी वास्तविक संख्या कितनी हैं, इनकी आर्थिक स्थिति क्या है, इसकी प्रमाणिक जानकारी नहीं है। एससी और एसटी की जनगणना तो प्रत्येक 10 वर्ष पर होती है, लेकिन ओबीसी सहित अन्य अगड़ी जातियों की नहीं होती। इसलिए ओबीसी की संख्या का निर्धारण करने के लिए इसके नेता केंद्र पर जातिगत जनगणना का दबाव डालते रहते हैं।
यह मान लिया गया है कि भारत में चुनाव को सबसे अधिक जातियां ही प्रभावित करती हैं। लिहाजा सभी राजनीतिक दल जाति की पहचान लेकर वोटबैंक को मजबूत करते हैं। इसमें दो राय नहीं है कि सभी जातियों का सामाजिक-आर्थिक उत्थान होना चाहिए। लेकिन केंद्र की सत्ता में रहने वाली पार्टियां किसी-न-किसी बहाने से जातिगत जनगणना को टालती रहती हैं। उन्हें लगता है कि इससे समाज में और विभाजन होगा एवं समावेशी विकास की अवधारणा पर गहरी चोट लगेगी।
जातिगत जनगणना नहीं कराने का एक यही भी कारण है कि आंकड़ों में भिन्नता होगी। अगर ओबीसी की आबादी 52 फीसद से घट जाती है तो सव्रे की तकनीक को लेकर नया विवाद हो सकता है और अगर बढ़ जाती है तो सत्ता में हिस्सेदारी की मांग और बढ़ेगी। लेकिन यह ऐसा मुद्दा है जिसे आज नहीं तो कल केंद्र को मानना ही पड़ेगा। बिहार में जातिगत गणना शुरू हो गई है। देश और बिहार की राजनीति पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।
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