चीन की सीमा तक रेललाइन
पड़ोसी मुल्क चीन की करतूतों को देखते हुए भारत सरकार ने अब उससे निपटने का कुछ और तरीका खोजा है।
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अब सरकार ने रेलवे के जरिये पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और भूटान के साथ परस्पर संपर्क को मजबूत बनाने की परियोजनाओं को क्रियान्वित करने का फैसला किया है। इनमें सिक्किम में तिब्बत की सीमा पर नाथू ला र्दे तक रेलवे लाइन बिछाने की योजना भी है।
दरअसल, चीन भारत से सटी सीमा पर कभी रोड तो कभी नदी पर पुल तो कभी रेल चलाने के उपक्रम करता रहता है। इस पूरी कवायद के पीछे उसका एकमात्र उद्देश्य भारत को तनाव में डालना, सीमा पर निर्माण कार्य के जरिये इलाके में घुसपैठ करना और जासूसी से जुड़ा पक्ष भी रहता है। चीन यह धत् कर्म आज से नहीं कर रहा है। जब से देश आजाद हुआ उसके बाद से उसकी कुटिलता चरम पर रही। 1962 का युद्ध हो या डोकलाम या फिर पैंगोंग इलाके में घुसपैठ करने की साजिश करनी हो, उसने हमेशा से पड़ोसी धर्म के उलट काम किया है।
यही कारण है कि भारत ने अब यह तय किया है कि चीन को उसी की शैली में जवाब दिया जाए। इस बार के बजट में रेलवे के जरिये पड़ोसी देशों तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के प्रावधान किए गए हैं। इसमें नेपाल के साथ-साथ रेलवे लिंक, भूटान के साथ दो लिंक, म्यांमार के साथ कम-से-कम एक महत्त्वपूर्ण लिंक और बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह से साथ त्रिपुरा के बिलोनिया तक रेल लिंक के अलावा सिक्किम में रंगपो से गंगटोक तक 69 किलोमीटर लंबी तथा गंगटोक से नाथू ला तक 260 किलोमीटर तक रेल संपर्क के लिए शुरुआती सव्रेक्षण के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित की गई है।
भारत इस मसले को लेकर किस कदर गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बजट के तुरंत बाद विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने काठमांडू की यात्रा की और सुरक्षा मामलों को लेकर बात की। नेपाल की इस पूरे मामले में अहम भूमिका इसलिए भी दिखती है क्योंकि चीन काठमांडू तक रेलवे ट्रैक बिछाने को आतुर है। उसे लगता है ऐसा करके वह भारत को जोखिम में डाल सकता है। यानी चीन काठमांडू तक पहुंच बनाकर भारत पर बढ़त बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है, जिसकी काट के लिए भारत की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। चीन की विस्तारवादी नीति को भोथरा करने के लिए यह बिल्कुल जरूरी कदम है।
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