खुली छूट नहीं
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एक बार किसी मामले की जांच शुरू कर दे तो इसके दायरे में आए किसी व्यक्ति के लिए छुटकारा पाना बेहद मुश्किल हो जाता है।
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आरोप लगाए जाते हैं कि धनशोधन के अपराधों के लिए शुरू हुई जांच धीरे-धीरे अनेक मामलों तक पहुंच जाती है। फाइल एक बार खुल जाती है तो पेंडिंग ही रहती है। गाहे बगाहे यह कभी भी खुल जाती है और लोगों को हलकान किए रहती है। प्राय: आय से अधिक संपत्ति के मामले में शुरू होने वाली ईडी की जांच से सबसे ज्यादा घबराने वाले लोगों में राजनेता प्रमुख होते हैं, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय के ईडी को सिर्फ धन शोधन के अपराधों की जांच तक सीमित रहने के निर्देश से बहुत से लोगों को राहत मिलने की उम्मीद है।
उच्च न्यायालय के अनुसार जांच एजेंसी सिर्फ अनुमान के आधार पर यह तय नहीं कर सकती कि कोई अपराध हुआ है। न्यायालय का कहना है कि जिस अपराध के बारे में अनुमान लगाया गया है, उसकी जांच करनी होगी और उस सिलसिले में कानूनी रूप से अधिकृत प्राधिकारों द्वारा ही सुनवाई करनी होगी। ईडी यह अपराध कथित तौर पर हुए होने की जांच करने की शक्ति नहीं हथिया सकती है।
अदालत के अनुसार इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि पीएमएलए ईडी को सिर्फ धारा 3 के तहत हुए अपराधों की जांच करने की शक्तियां देता है। जांच करने की इसकी शक्तियां इस धारा में परिभाषित धन शोधन के अपराध तक सीमित हैं। धनशोधन के अलावा ईडी के अनुमानित अपराधों की जांच और सुनवाई का प्राथमिक कार्य उन स्वतंत्र विधानों के तहत गठित प्राधिकारों में निहित है।
किसी भी मामले में ईडी खुद से यह तय नहीं कर सकती कि खास तथ्यों का समूह एक अनुमानित अपराध का साक्ष्य है, जिसके आधार पर पीएमएलए की कार्रवाई शुरू करने की जरूरत है। दिल्ली उच्च न्यायालय का यह अहम फैसला प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड और प्रकाश थर्मल पावर लिमिटेड की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है।
आरोप था कि दोनों कंपनियों ने कोयला ब्लॉक खरीदने के लिए अपनी कुल संपत्ति के बारे में सही आंकड़े नहीं दिये थे। यह फैसला अनेक उद्योगों और व्यक्तियों को बेवजह की जांचों के दायरे में फंसने से राहत देगा, जिनके एक बार शुरू हो जाने के बाद यह पता चलना मुश्किल हो जाता है कि इनका निपटारा कब होगा और कब तक किसी को सफाई के लिए पेश होते रहना होगा।
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