हक की आवाज
महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में हरियाणा एक नई पहल का केंद्र बन रहा है। कामयाब हुई तो यह पहल अन्य राज्यों के लिए प्रेरक बन सकती है।
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राज्य के गांवों में लड़कियां पंचायत करके मांग कर रही हैं कि राज्य सरकार महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए पीरियड लीव जैसे जरूरी कदम उठाए। इनकी मांग है कि सरकार मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान करे। इसके लिए नया स्वास्थ्य बिल लाकर पारित किया जाना चाहिए। इन पंचायतों को लाडो पंचायत कहा जा रहा है। लड़कियों का कहना है कि पीरियड के कारण महिलाओं की कार्य क्षमता पर भी असर पड़ता है।
लेकिन मुश्किल यह है कि इस मुद्दे पर बात करना आज भी समाज में अच्छा नहीं समझा जाता। ऐसे में कामकाजी महिलाओं के लिए काम और शारीरिक दिक्कतों के बीच सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है। अच्छी बात यह है कि इन पंचायतों को समाज के प्रबुद्ध लोगों का साथ भी मिल रहा है अन्यथा एक समय में तो इस बारे में सोच पाना भी बड़ी मुश्किल का काम था। आज बहुत से गांवों में पूर्व सरपंच और अन्य लोग ऐसी पंचायतों के आयोजन में बढ़-चढ़ कर सहयोग कर रहे हैं।
पीरियड लीव बहुत से देशों में प्रचलित हैं। जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे कुछ देशों में इसका प्रावधान है। भारत में जोमैटो जैसी कुछ कंपनियों और कुछ शिक्षण संस्थानों ने इस बारे में महिलाओं के लिए पीरियड लीव जैसी व्यवस्थाएं की हैं। पीरियड लीव में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सवेतन छुट्टी देने की व्यवस्था है। महिलाएं इस अवकाश को अपनी आवश्यकता के अनुसार ले सकती हैं। भारत में बिहार ही ऐसा राज्य है जहां सरकार द्वारा पीरियड लीव का प्रावधान है।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में महीने में 2 दिन महिलाओं को पीरियड लीव देने की व्यवस्था की थी। 2017 में संसद में एक प्राइवेट बिल पेश किया गया था जिसमें महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने और चार दिन का पीरियड लीव देने इत्यादि की मांग की गई थी। बिल में यह सुविधा क्लास 8 या उससे ऊपर पढ़ने वाली छात्राओं के लिए भी देने की बात थी, जिसमें उनको स्कूल से छुट्टी का प्रावधान हो। बहुमत के अभाव में बिल पास नहीं किया जा सका। हरियाणा में लड़कियों ने जो बीड़ा उठाया है, उसमें यदि सफलता मिली तो यह मुहिम पूरे देश के लिए मिसाल बन सकती है।
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