कानून की दुविधा
सर्वोच्च न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जो बात कही है न्याय प्रक्रिया के तहत सटीक कही जा सकती है।
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आखिर किसी आरोपी को दोषी साबित हुए बिना कब तक जेल में रखा जा सकता है। जाहिर है यह अवधि अनिश्चितकाल तक नहीं हो सकती। यह मामला ऐसा है जिससे यह दुविधा उत्पन्न होने के पर्याप्त कारण हैं कि इससे आरोपी को राहत मिलेगी या पीड़ितों के दुखों में वृद्धि होगी। दुविधा इस बात से होती है कि शीर्ष अदालत का कहना है कि इस मामले में सबसे ज्यादा पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं और अगर आशीष मिश्रा को राहत नहीं मिली तो उनके भी जेल में ही रहने की संभावना है।
आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा का बेटा है। याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए पीठ ने कहा कि यह मामला सभी पक्षों के अधिकारों में संतुलन बनाने का है। गौरतलब है कि तीन अक्टूबर 2021 को जिले के तिकुनिया में हुई हिंसा में आठ लोग मारे गए थे,जब किसान तत्कालीन उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के दौरे का विरोध कर रहे थे।आशीष मिश्रा की एसयूवी ने चार किसानों को कुचल दिया था।
घटना से आक्रोशित किसानों ने एसयूवी के चालक और दो भाजपा कार्यकर्ताओं की कथित तौर पर पीट कर जान ले ली थी। हिंसा में एक पत्रकार भी मारा गया था। अदालत के अनुसार यह केवल एक याचिकाकर्ता का मामला नहीं है। उन पीड़ितों का भी है जो अदालत नहीं आ सकते। सबसे अधिक पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं। इस व्यक्ति को कुछ नहीं (जमानत) दिया गया तो उन्हें भी कोई कुछ नहीं देगा। वे भी जेल में रहेंगे।
जमानत याचिका का विरोध कर रहे लोगों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे की प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है कि मामला कितना पेचीदा है। उन्होंने अदालत की इस तुलना से हैरानी व निराशा व्यक्त की। उप्र सरकार के रुख ने सबको चौंका दिया। अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा, यह एक गंभीर व जघन्य अपराध है और जमानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।
यह मामला विवादित कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को एसयूवी से कुचलने का है जिसे कथित साजिश और इरादे से अंजाम दिया गया था। तबसे मामला रोज ब रोज उलझता ही जा रहा है।
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