भारत की दो टूक
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के शांति वाले बयान पर भारत की प्रतिक्रिया बेहद सधी और सही है।
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शहबाज ने कुछ दिनों पूर्व कहा था कि पाकिस्तान ने एक ‘सबक’ सीख लिया है और वह भारत के साथ शांति से रहना चाहता है। भारत ने शहबाज के इसी बयान पर अपनी प्रतिक्रिया में साफ तौर पर दर्शा दिया कि जब तक पड़ोसी देश भारत के प्रति अपने नजरिये में बदलाव नहीं लाएगा, तब तक सामान्य पड़ोसियों जैसे संबंध नहीं बन सकते। साफ है कि पाकिस्तान के दिल में एक कसक सी रह गई है कि काश भारत के साथ उसके रिश्ते सामान्य से ज्यादा मधुर होते।
दरअसल, पाकिस्तान की पूरी राजनीति की धुरी भारत विरोध के ईर्द-गिर्द घूमती है। भारत से संबंधों में जोश-खरोश की बात की तो जाती है, मगर कुछ ही पल में उस बयान से पलट जाते हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का बयान भी ठीक इसी तर्ज पर आया था। पहले तो उन्होंने उत्साह में यह बयान दे डाला कि दोनों देशों के बीच संबंधों को सौहाद्र्रपूर्ण बनाने के लिए बातचीत की मेज पर आना चाहिए।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने दुबई स्थत अल अरबिया समाचार चैनल के साथ एक साक्षात्कार के दौरान बकायदा कश्मीर सहित विभिन्न ‘ज्वलंत’ मुद्दों के समाधान के लिए अपने भारतीय समकक्ष नरेन्द्र मोदी के साथ ‘गंभीर’ बातचीत की पेशकश की थी। अलबत्ता, थोड़े ही दिनों में शहबाज के कार्यालय से यह कहा गया कि उनकी (शहबाज) बात को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है और उन्होंने बिना शर्त बातचीत की पेशकश नहीं की थी।
भारत हमेशा से इसी रीति और नीति पर चलता रहा है कि पड़ोसी देशों के साथ बेहद सहज, संवेदना के स्तर पर परिपक्व और गर्माहट भरे हों। इस रिश्ते में कहीं से भी द्वेष, वैमनस्यता, आतंकी सोच और कसैलापन नहीं है। इसी नाते भारत ने दो टूक कहा कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद से मुक्त माहौल नहीं बनाएगा तब तक संबंध सुधर नहीं सकते। पाकिस्तान बातचीत की हिमायत तो करता है,
मगर भारत में निदरेष लोगों के खून भी बहाता है, साजिश रचता है और अलगाववाद के लिए लोगों को भड़काता है। जबकि आतंकवादी साजिश और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। कुल मिलाकर भारत की नसीहत पर पाकिस्तान को गहराई से विचारने की जरूरत है।
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