जांच में रहे गंभीरता
भ्रष्टाचार के मामलों की जांच किसे करनी चाहिए इसे लेकर अक्सर दुविधा बनी रहती है। इसके लिए भ्रष्टाचार के स्तर के अनुसार विभिन्न जांच एजेंसियों की जिम्मेदारियां तय हैं।
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कुछ कार्यालय इस व्यवस्था में अपनी सुविधानुसार फेरबदल कर देते हैं। ऐसा करने वाले कार्यालयों को केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की नाराजी का शिकार होना पड़ा है। सीवीसी ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, बीमा कंपनियों और केंद्र सरकार के कई विभागों से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को शामिल नहीं करने की हिदायत दी है। यह निर्देश ऐसे वक्त पर आया है जब यह देखा गया कि कुछ संगठन जांच अधिकारी के तौर पर सेवानिवृत्त अधिकारियों को जांच अधिकारी नियुक्त करने की परंपरा सी बना चुके हैं। जबकि ऐसा करना इस संबंध में सीवीसी के करीब दो दशक पुराने निर्देशों का सरासर उल्लंघन हैं।
आयोग के अनुसार यह भी अहम है कि सतर्कता पदाधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाए और अगर वे उन्हें दिए गए दायित्वों के निर्वहन में गोपनीयता, निष्पक्षता या सत्यनिष्ठा से समझौता करते हुए पाए जाते हैं तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। सेवानिवृत्त अधिकारियों के मामले में ऐसी सखती संभव नहीं होती क्योंकि वे तो पहले ही सेवा से मुक्त हो चुके होते और क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी कदाचार के लिए अनुशासनात्मक नियम उन पर लागू नहीं होते इससे उन पर जांच का सामना कर रहे कर्मचारीकई तरह के डोरे डाल सकते हैं। अगस्त 2000 में आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि किसी भी संगठन में सतर्कता पदाधिकारी पूर्णकालिक कर्मचारी होने चाहिए और किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी को नियुक्त न किया जाए।
आयोग ने अपने निर्देश की साफ अवहेलना होती देखी तो 13 जनवरी को स्पष्ट आदेश जारी कर दिया जिसमें कहा है कि देखा जा रहा है कि कुछ संगठन अब भी जांच करने के लिए जांच अधिकारी के तौर पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को नियुक्त कर रहे हैं। केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उपक्रमों, बैंकों और बीमा कंपनियों के मुख्य कार्यकारियों को ऐसा करने से बचना चाहिए। जांच अधिकारी और अन्य सतर्कता पदाधिकारी अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करने, जांच रिपोर्ट तैयार करने और गोपनीय दस्तावेज समेत अन्य दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
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