ठीक नहीं खींतचान
दिल्ली की राजनीति में आजकल बहुत ही अजब गजब दृश्य देखने को मिल रहे हैं। ऐसा तो किसी भी राज्य या यूटी में देखने को नहीं मिलता।
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सोमवार को दिल्ली के मंत्रिमंडल सहित पूरी आप सरकार एलजी हाउस तक विरोध मार्च कर रही थी, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कर रहे थे। विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों/एलजी और सरकार के बीच खींचतान चलती रहती है। चाहे वह प.बंगाल हो, तमिलनाडु, केरल या दिल्ली हो। सिर्फ राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और बिहार के मुख्यमंत्री तालमेल बनाए हुए हैं। दिल्ली में नया मोर्चा सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजे जाने के मामले में खुला है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली सर्वोत्तम है। यदि शिक्षकों का वहां प्रशिक्षण हो तो दिल्ली के बच्चों को बहुत फायदा होगा। मुख्यमंत्री केजरीवाल का दावा है कि एलजी ने प्रस्ताव को दो बार खारिज कर दिया। उनका आरोप है कि उपराज्यपाल वीके सक्सेना हमारी चुनी हुई सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं। उन्होंने सोमवार को कहा कि एलजी हमारे हेडमास्टर नहीं हैं, जो हमारा गृह कार्य जांचेंगे और उन्हें हमारे प्रस्तावों पर केवल हां या ना कहना है।
एलजी को हेडमास्टर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। केजरीवाल का कहना था कि उनकी सरकार किसी भी कीमत पर शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजकर रहेगी। एलजी कार्यालय का कहना है कि शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने के प्रस्ताव को खारिज नहीं किया गया है, बल्कि सरकार को इसका समग्र मूल्यांकन करने की सलाह दी गई है।
केजरीवाल के अनुसार चार जुलाई 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास खुद से निर्णय लेने की शक्ति नहीं है, लेकिन इस पर अमल नहीं किया जा रहा। दिल्ली सरकार ने अब तक 1,079 शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए विभिन्न देशों में भेजा है।
इनमें से 59 फिनलैंड, 420 कैंब्रिज और 600 सिंगापुर गए हैं। इसके अलावा, 860 स्कूल प्रधानाचार्यों को भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद और लखनऊ में प्रशिक्षण दिया गया है। दिल्ली में एक चुनी हुई सरकार है, लेकिन देश की राजधानी होने के कारण यहां की शासन व्यवस्था संविधान ने निर्दिष्ट की हुई है। शीर्ष अदालत भी इसे स्पष्ट कर चुका है। सभी जिम्मेदार लोगों को अपनी हद समझनी होगी।
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