चेताती रिपोर्ट
विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वाषिर्क बैठक के पहले दिन सोमवार को दावोस में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने पेश वाषिर्क असमानता रिपोर्ट-सर्वाइवल ऑफ रिचेस्ट’-में कहा है कि भारत में मात्र एक फीसद लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40 फीसद हिस्सा है।
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यह आंकड़ा भी हैरत में डालने वाला है कि नीचे से 50 फीसद आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का सिर्फ तीन फीसद है। आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन संपत्ति में असमानता का मुद्दा कोई नया नहीं है। कल्याणकारी अर्थव्यवस्था में सरकार की कोशिश रहती है कि आय और संपत्ति के मामले में असमानता कम से कम की जाए।
आजादी के बाद से भारत इस बाबत प्रयासरत था और 1991 तक के आंकड़ों से इस बात की तस्दीक होती है कि साल दर साल असमानता कम होने की तरफ अग्रसर थी, लेकिन 1991 में उदारीकरण लागू होने के बाद से असमानता तेजी से बड़ी। उद्योग-हितैषी नीतियां लागू की गई और कॉरपोरेट को ज्यादा से ज्यादा सहूलियतें मिलने लगीं। इस क्रम में उद्योग और कंपनी क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने की गरज से ऐसी नीतियां लागू हुई जिनसे देश में पूंजी का प्रवाह और निवेश बढ़ा।
लेकिन उदारीकरण के एकदम बाद के वर्षो में श्रम बल अपेक्षानुरूप कुशल नहीं मिला। उद्योग क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छंटनी हुई। निवेश बढ़ाने की गरज से बड़े उद्योगों को सहूलियतों में इजाफे के बीच कॉरपोरेट टैक्स में कटौती जैसी व्यवस्थाएं तो की गई लेकिन आम जन को लाभान्वित करने की बाबत कोई ज्यादा प्रयास नहीं हुए। जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी को एक उपलब्धि के रूप में गिनाया जाता है, लेकिन यह टैक्स आम जन पर भारी पड़ रहा है।
उसके लिए आटा और पैंसिल-कागज जैसी चीजें भी महंगी हो गई हैं। आम जन संपत्ति और आय में असमानता के दंश से बचाने के लिए यदि करों को ही तर्कसंगत कर दिया जाए तो काफी राहत मिल सकती है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 फीसद धनी लोगों पर कर बढ़ाकर देश के बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकाला जा सकता है। अरबपतियों पर 2 फीसद कर लगाया जाए तो कुपोषितों के पोषण के लिए धन की व्यवस्था हो सकती है।
रिपोर्ट ने महिलाओं को मिल रहे कम वेतन की तरफ भी ध्यान खींचा है, जो प्रबुद्ध समाज में अस्वीकार्य है। रिपोर्ट पर सरकार के रुख का अभी पता नहीं चला है, लेकिन इसकी मदद से कराधान को तार्किक बनाने की दिशा में जरूर बढ़ा जा सकता है।
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