बेमानी पेशकश
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीर समेत विभिन्न ‘ज्वलंत’ मुद्दों के हल के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ‘गंभीर’ बातचीत का आह्वान किया है।
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यह कहते हुए कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) परमाणु हथियार संपन्न इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच बातचीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। शहबाज शरीफ ने दुबई स्थित अल अरबिया समाचार चैनल के साथ एक साक्षात्कार में यह मंशा जताई। गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध कश्मीर के मुद्दे पर आजादी के बाद से ही तनावपूर्ण रहे हैं, और इस हद तक रहे कि दोनों देशों के बीच युद्ध भी हुए।
हालांकि हर बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। भारत के खिलाफ उसने प्रॉक्सी वॉर छेड़ा और सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता रहा। भारत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद तो दोनों देशों के बीच संबंध और भी खराब हो गए। पाकिस्तान ने अपनी धरती पर आतंकियों को प्रशिक्षण देकर भारत की सीमा में भेजकर हिंसा और खूनखराबा करने के मंसूबे पाल रखे हैं।
लेकिन भारत न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि कूटनीतिक मोच्रे पर भी उस पर भारी पड़ा है। हाल में पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद के मोच्रे पर भारत को एक और बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल हुई जब संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के उपप्रमुख अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। जहां तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की यूएई की मध्यस्थता संबंधी जो मंशा जताई गई है, उसका कोई मतलब नहीं है। भारत कश्मीर के मुद्दे पर किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को पहले ही खारिज कर चुका है।
हालांकि शहबाज ने नसीहत भरे अंदाज में कहा है कि युद्धों से पाकिस्तान के लोगों को दुख, गरीबी और बेरोजगारी का दंश मिला है। इससे उसने सीख ली है और शांति से रहना चाहता है। बेशक, कोई अपने किए-धरे पर तौबा करे तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। और बातचीत की पेशकश करे तो और भी उत्साहजनक है। लेकिन तीसरे देश की मध्यस्था की बात कहे जाने पर लगता है कि शहबाज ने बेमानी बात कही है। वह इस बारे में भारत के रुख से वाकिफ है। आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। बातचीत का अनुकूल माहौल जरूरी है।
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