ओमीक्रोन का डर बरकरार
देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा का यह कहना बिल्कुल सही है कि कोविड-19 का ओमीक्रोन वेरिएंट ‘साइलेंट किलर’ है।
![]() ओमीक्रोन का डर बरकरार |
जिन्हें लगता है कि कोरोना अब बेअसर और कमजोर पड़ चुका है, हकीकत में वह संकट से या तो आंखें मूंदे हुए हैं या सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पहली लहर में तो मैं चार दिन में स्वस्थ हो गया था, मगर दूसरी लहर में बीमार पड़ने के 25 दिनों बाद भी मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो सका हूं। दरअसल, सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दायर हुई कि अब सुनवाई लोगों की मौजूदगी में हो।
इसी पर प्रधान न्यायाधीश ने अपनी बात रखी। यह तथ्य हालांकि जरूर सोचनीय और गंभीर है कि ऑफलाइन सुनवाई न होने का असर वकीलों और इससे जुड़े अन्य व्यवसायों पर पड़ा है। खासकर निचली अदालतों में पहले लॉकडाउन और दूसरे दौर की पाबंदियों का गहरा दुष्प्रभाव वकालत करने वालों पर पड़ा। खबरें तो यहां तक आई कि वकालत का पेशा कइयों ने छोड़कर दूसरा व्यवसाय अपना लिया।
अपने परिवार पर आसन्न संकट को वो लोग नहीं झेल सके। इसी संदर्भ में एनवी रमणा ने कोरोना के कहर को लेकर अपनी आपबीती बताई। निश्चित तौर पर वकीलों के बारे में सोचा जाना चाहिए। राज्य सरकारों को भी और न्यायिक पद के सर्वोच्च पद पर आसीन लोगों को भी। मगर प्रधान न्यायाधीश की बातों को भी अनसुना नहीं किया जाना चाहिए। आज ही के अखबारों में खबर है कि दिल्ली में एक बार फिर कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आई है। कई और शहरों में अभी पूरी तरह से कोरोना खत्म नहीं हुआ है। इसके उलट लोग अब ज्यादा बेपरवाह हो गए हैं। मास्क लगाना तो दूर, वो कोरोना फैलने से रोकने वाले उन निर्देशों को भी बहुत हल्के में ले रहे हैं।
जबकि इस जानलेवा महामारी से मरने वालों का आंकड़ा अब भी थमा नहीं है। बुधवार को कोरोना से 278 लोगों की मौत की आधिकारिक सूचना है। वहीं एक दिन में देश भर में 15 हजार नये मामले भी दर्ज किए गए हैं। इस लिहाज से हर एक देशवासी को इसे हल्के में लेने की भूल नहीं करनी चाहिए। यह कब चुपके से आप पर वार कर देगा, कोई नहीं जानता। सो, हमें बेहद सतर्क होकर अपनी गतिविधियों को संचालित करना होगा। अच्छी बात है कि देश के करीब 80 फीसद से ज्यादा वयस्कों को टीके की दोनों खुराकें लग चुकी है।
Tweet![]() |