बेटियों के हक में फैसला

Last Updated 24 Jan 2022 01:50:07 AM IST

विपत्ति में महिलाओं के अधिकारों के संबंध में मील का पत्थर साबित होने वाले हालिया फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक और पारिवारिक संपत्ति पर महिलाओं के हक को और पुख्ता कर दिया है।


बेटियों के हक में फैसला

अभी तक पैतृक संपत्ति में बेटियों का अधिकार कहने भर को था। हालांकि उत्तराधिकार कानूनों में बेटियों के समान हक को परिभाषित किया गया है लेकिन धारणा यह है कि विवाह होते ही बेटियों का पैतृक संपत्ति से हक खत्म हो जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए बेटियों के हक को और स्पष्ट कर दिया है कि किसी व्यक्ति का बिना वसीयत किए निधन हो जाने पर उसकी संपत्ति पर बेटी का अधिकार खत्म नहीं होता।

यहां तक कि ऐसे मामलों में बेटी का अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से ज्यादा होगा। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महिलाओं और विधवाओं के अधिकारों के मामले में यह फैसला बेहद अहम है। फैसले में कहा गया है कि अगर ऐसे व्यक्ति की संपत्ति उसके अपने साधनों से अर्जित है, या पारिवारिक संपत्ति में विभाजन के बाद प्राप्त हुई है तो वो उत्तराधिकार के नियमों के तहत दी जाएगी और ऐसे में बेटी का अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से पहले होगा।

मुकदमा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) बनने से पहले का था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि यह उन मामलों पर भी लागू होगा जिनमें किसी व्यक्ति की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) के बनने से पहले हो गई हो। फैसले से स्पष्ट हो गया है कि संपत्ति के अधिकार के सवाल पर पुरुषों और महिलाओं के अधिकार बराबर हैं।

अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई हिंदू महिला बिना वसीयत के मर जाती है, तो पिता-माता से प्राप्त संपत्ति पिता के उत्तराधिकारियों के पास वापस चली जाएगी जबकि पति या ससुर से प्राप्त संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों के पास चली जाएगी। महिला का पति या कोई भी संतान जीवित है तो उसकी सारी संपत्ति उसके पति या उसकी संतान के पास चली जाएगी। हो सकता है कि अब अदालतों में उत्तराधिकार संबंधी मुकदमों की बाढ़ आ जाए क्योंकि हक से वंचित महिलाएं अपने हकों के लिए उठ खड़ी होंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह फैसला सभी मामलों में मार्गदर्शन करेगा और सभी मामले पारिवारिक सहमति से सुलझ जाएंगे।



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