महामारी ने बढ़ाई गरीबी
पिछले दो सालों से कोविड-19 महामारी ने विश्व भर को हलकान किया हुआ है। इसका प्रकोप अभी भी कम नहीं हुआ है, और महामारी के उत्तरोत्तर नये-नये रूप सामने आने से अभी भी तमाम देश डरे हुए हैं।
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इन दिनों ओमीक्रोन का संक्रमण फैला हुआ है। बेहद संक्रामक यह वायरस अबूझ पहेली सा स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चुनौती बन गया है। वे इसके घातक पहलू को लेकर निश्ंिचतता से कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। बीते दो वर्षो के दौरान कोरोना महामारी न केवल लोगों की जान पर भारी साबित हुई है, बल्कि आर्थिक रूप से भी तमाम देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लग चुका है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था को इस कदर गहरा धक्का लगा है कि बीते दो साल में दुनिया के 99 प्रतिशत लोगों की आमदनी में गिरावट दर्ज की गई है। न केवल आमदनी घटी है, बल्कि सीधे-सीधे 16 करोड़ लोग ‘गरीब’ की श्रेणी में आ गए हैं। बढ़ती आर्थिक असमानता लोगों की जान तक ले रही है। विश्व आर्थिक मंच के ऑनलाइन दावोस एजेंडा शिखर सम्मेलन के पहले दिन जारी अपनी रिपोर्ट में ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने कहा है कि असमानता की वजह से प्रति दिन 21 हजार व्यक्ति यानी प्रति सेकंड एक व्यक्ति की मौत हो रही है।
संस्था ने अपनी रिपोर्ट ‘इनइक्वलिटी किल्स’ में स्वास्थ्य देखभाल, लिंग आधारित हिंसा, भूख और जलवायु की वजह से वैश्विक स्तर पर होने वाली मौतों से यह निष्कर्ष निकाला है। ऑक्सफेम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बूचर ने कहा है कि महामारी को लेकर दुनिया की प्रतिक्रिया बेहद विपरीत रही है, जिसके चलते आर्थिक हिंसा में इजाफा हुआ है। खासकर नस्लीय हिंसा, सीमांत वर्ग के लोगों खिलाफ और लिंग के आधार पर हिंसा को बढ़ावा मिला है।
महिलाओं पर तो खासा असर पड़ा है। 2020 में महिलाओं को सामूहिक रूप से 800 अरब डॉलर की कमाई का नुकसान हुआ है। कोरोना से पहले वर्ष 2019 की तुलना में अब 1.3 करोड़ कम महिलाएं काम करती हैं। जैसा व्यापक असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महामारी ने डाला है, उससे उबरने में समय लगना तय है। ऐसा नहीं होता कि कोई अर्थव्यवस्था एकाएक र्ढे पर लौट आए। तमाम कारक होते हैं, जो सकारात्मक रहने चाहिए। बेहतर हालात होने की धारणा उभरना जरूरी है, जो महामारी के जारी प्रकोप के चलते अभी कमजोर है।
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