दिखानी होगी समझदारी
कोरोना महामारी के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने पहले चरण की पाबंदियां लगाकर जनता को साफ संदेश दे दिया है।
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संदेश यही कि अगर बाजार में, मॉल में या अन्य जगहों पर भीड़-भाड़ कम नहीं हुई तो इससे ज्यादा सख्त पाबंदियां लगाई जाएंगी। एक दिन में 500 से ज्यादा केस सामने आना इस सख्ती की प्रमुख वजह मानी जा रही है। अब से मेट्रो में आधी सवारियां ही बैठेगी, अर्से से बंद सिनेमाहॉल और जिम फिलहाल पूरी तरह से बंद करने के आदेश दिए गए हैं।
यहां तक कि सबसे ज्यादा दुर्गति शिक्षा व्यवस्था की हुई है, स्कूलों को भी अगले आदेश तक के लिए बंद कर दिया गया है। बंदी के बाद के हालात कितने दर्दनाक और दुारियों भरे होते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। पिछले दो वर्ष से कामकाज से लेकर शैक्षणिक कामकाज सब कुछ पटरी से उतरा हुआ है।
बीच में हालात सामान्य हुए तो आहिस्ता-आहिस्ता सबकुछ गुलजार होने वाला था कि अब कोरोना के नये वैरिएंट ओमीक्रोन ने हलचल मचा दी है। तमाम बंदिशों और दिशा-निर्देशों के बावजूद लोगों में न तो समझदारी दिखी न सतर्कता। नतीजतन सरकार को सख्ती के लिए मजबूर होना पड़ा। हाल ही में दिल्ली के सरोजनीनगर बाजार में जमा भारी जमावड़े से हाईकोर्ट काफी नाराज दिखा। दूसरे बाजारों में भी कमोबेश हालात काबू से बाहर दिखे। राजधानी दिल्ली में संक्रमण में 50 फीसद का उछाल देखा गया। हालांकि मुबंई में इससे कहीं ज्यादा (70 फीसद) संक्रमण दर्ज किया गया, मगर अभी तक वहां दिल्ली जैसी पाबंदियां नहीं लगाई गई है।
यह तो शुक्र मनाइए कि ओमीक्रोन डेल्टा वैरिएंट जैसा जानलेवा नहीं है, वरना जिस तरह की लापरवाही जनता ने दिखाई है, उससे नि:संदेह हालात काबू से बाहर होते। एक बात राजनीतिक दलों को भी समझने की जरूरत है। रोक-टोक सिर्फ जनता के लिए ही क्यों हों? नेताओं की जिम्मेदारी कहीं ज्यादा होती है, मगर इस मोच्रे पर वह नाकाम रहे हैं। चुनांचे किसी भी तरह की सख्ती लगाने से पहले अगर सरकार उससे निपटने के उपाय या कोई वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराती तो यह कहीं ज्यादा बेहतर होता। चूंकि अभी सिर्फ दिल्ली में इस तरह की सख्ती बरती गई है, लिहाजा उन राज्यों की जनता पर जिम्मेदारी ज्यादा है जहां मामले लगातार बढ़ रहे हैं। देखना है, संयम कौन दिखाता है-राजनीतिक दल या आमजन।
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