नये साल में अर्थव्यवस्था
2021 आ चुका है, एक दुस्वप्न जैसा साल यानी 2020 बीत ही चुका है। 2020 आर्थिक दुस्वप्न रहा कइयों के लिए, शहरों से अपने गांवों की ओर जाते मजदूर।
![]() नये साल में अर्थव्यवस्था |
बंद होती दुकानें और परेशान होते छोटे कारोबारी, यह सब छवियां 2020 से जुड़ी हैं। पर सवाल आगे का है। जो बीत गया सो बीत गया। कल जा चुका है। आज आप 1 जनवरी 2021 में और अब से ठीक महीने बाद यानी 1 फरवरी 2021 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट पेश करेंगी। क्या उम्मीदें रखें, क्या आशंकाएं रखें, ये सवाल बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ग्रामीण क्षेत्र की खरीद ताकत कैसे बढ़े, यह चुनौती है। मनरेगा में बजट की बढ़ोतरी कैसे की जाए, यह सवाल अहम है। तमाम तरह के खचरे के बावजूद राजकोषीय घाटा तय सीमा से ऊपर ना जाए, यह सवाल अपनी जगह बना ही हुआ है। कुल मिलाकर सवाल और चुनौतियों की कमी नहीं है।
पर 2020 ने यह भी साफ किया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चुनौतियों को झेलना जानती है। कोरोना ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित जरूर किया पर वह अब वापसी की राह पर है। आम आदमी उम्मीदों पर ही जीता है। साल के आखिरी दिन मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक 47751 बिंदु पर बंद हुआ पूरे साल का हिसाब लगाएं, तो इसमें 15.75 प्रतिशत की बढ़त रही। आर्थिक तौर पर खराब साल में भी 15.75 प्रतिशत की बढ़ोतरी यानी उम्मीद पर दुनिया और शेयर बाजार कायम है। दरअसल, उम्मीद पर ही सब कुछ कायम है। हालात सुधरेंगे, बेहतर होंगे, इसी उम्मीद पर आगे हालात सुधरेंगे। बाजार में क्रय शक्ति बढ़ेगी, ऐसी उम्मीद है। किसानों के आंदोलन में थोड़ी नरमी दिखाई दे रही है। कुल मिलाकर 2021 से बेहतरी की उम्मीदें की जानी चाहिए।
हां यह नहीं भुलाया जाना चाहिए कि चुनौतियां बाकी हैं। मध्यवर्ग और खासकर नौकरीपेशा मध्यवर्ग 2020 में कई परेशानियों से दो चार हुआ। उसकी मदद के लिए कुछ ठोस आए बजट में, तो बेहतर हो। नौकरीपेशा मध्यवर्ग भारत में ऐसी जमात है, जो वोट बैंक नहीं है। उसकी कोई भी राजनीतिक औकात नहीं है। पर यह एक तरह से अर्थव्यवस्था का इंजन तमाम तरह की खरीदारी करता है। बजट कुछ राहत इसे दे, तो अर्थव्यवस्था में नई तरह की खरीद क्षमता आयेगा। नया साल समग्र अर्थव्यवस्था के लिए और सबकी निजी अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर साबित हो, ऐसी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
Tweet![]() |