कलह चरम पर
कांग्रेस पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। बिहार चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद न केवल पार्टी के अंदर हलचल और आरोप-प्रत्यारोप जारी है, वरन पार्टी के बाहर सहयोगी दल भी कांग्रेस को लेकर हमलावर हैं।
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गौरतलब है कि 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद मात्र 19 विधायक इस बार चुनाव जीत पाए हैं, जो कि पिछले बार के 27 विधायकों से 8 कम हैं। करारी हार के पश्चात शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली, अनियोजित व लचर रणनीति और चुनाव को हल्के में लेने की आदत से नाराज नेताओं की तरफ से सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी तेज हो गई है। पार्टी के बदतर प्रदर्शन पर वैसे तो सबसे पहली प्रतिक्रिया कांग्रेस नेता तारिक अनवर की तरफ से आई।
तारिक ने सीधे-सीधे उम्मीदवारों के चयन पर सवाल उठाया और कहा कि बिहार में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण उम्मीदवारों के चयन में हुई गलतियां हैं। कटिहार के पूर्व सांसद तारिक अनवर ने कहा कि प्रचार और कमान संभालने में चूक भी हार की बड़ी वजह है, यही कारण है कि पार्टी में फिलहाल बड़े बदलाव की जरूरत है। वामपंथी दलों ने भी कांग्रेस के उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन न करने पर गहरी निराशा जताई थी। उन्होंने तो यहां तक कहा कि अगर कांग्रेस के बजाय उन लोगों को इतनी सीटें दी जाती तो नतीजे कुछ और होते। अब कपिल सिब्बल और कार्ति चिदम्बरम ने कांग्रेस आलाकमान पर सवाल दागने के अंदाज में कहा कि, कांग्रेस ने हार को ही नियति मान लिया है। पार्टी चिंतन करने से बचती है।
वहीं कार्ति चिदम्बरम ने कहा कि यह पार्टी के लिए आत्मविश्लेषण-चिंतन का विषय है। अगर इन सबके बयान को देखें तो एक बात तो साफ है कि पार्टी थकी सी प्रतीत होती है और अंदरखाने नेताओं में यह छटपटाहट दिखती है कि आलाकमान ज्यादा आक्रामकता के साथ सामने आए। 2019 के आम चुनाव में करारी हार से पार्टी अब तक नहीं उबर सकी है। लगातार मिल रही पराजय ने पार्टी नेतृत्व को तो असहज किया ही है, साथ ही गठबंधन के सहयोगी दलों में भी हताशा पसरी है। यह किसी भी पार्टी के लिए अच्छी बात नहीं है। कांग्रेस को यह तथ्य अच्छे से समझना होगा कि भले उसका राष्ट्रीय फलक हो, मगर जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है; वहां छोटा भाई बनकर ही मनोनुकूल रास्ता बनाया जा सकता है। ज्यादा अकड़ दिखाने और लापरवाह रवैया पार्टी को रसातल में ले जाएगा।
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