उम्मीदों का निवेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंकड़ा दिया-कोरोना संकट के बावजूद अप्रैल-अगस्त 2020 की अवधि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रिकार्ड स्तर पर रहा-35.73 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, पिछले साल यानी अप्रैल-अगस्त 2019 की अवधि के मुकाबले 13 प्रतिशत ज्यादा रहा।
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एक और आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक ने दिया। 23 अक्टूबर 2020 को खत्म हुए हफ्ते में भारतीय विदेशी मुद्रा कोष 560.532 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंचा। 2020 में पांच जून को पहली बार देश में विदेशी मुद्रा कोष ने 500 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया।
किसी अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश तब ही आता है, जब दो बिंदुओं पर एकदम पक्की आस्ति हो। एक-इस निवेश पर लाभ कमाया जा सकेगा और दूसरी बात-यह है कि यह निवेश सुरक्षित है। वरना विदेशी निवेशक किसी अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं लगाते। भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर तो हो सकती है, पर उसकी संभावनाएं कमजोर नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि 2021 में जब भारतीय अर्थव्यवस्था दोबारा उठना शुरू होगी, तब बहुत तेज वापसी करेगी।
कोई अर्थव्यवस्था विकट संकट में तब आती है, जब उसके ऊपर भीषण कर्ज लदा होता है और संसाधनों के स्रोत सूख जाते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में संसाधनों के स्रोत कमजोर हुए हैं, पर वो सूखे नहीं हैं। कई उद्योगों में बिक्री की स्थिति कोरोना से पहले की स्थिति पर पहुंच रही है। ऑटोमोबाइल उद्योग में कार उद्योग की सबसे बड़ी कंपनी के अधिकारी ने कहा कि कारों पर जीएसटी कर कम किए जाने की जरूरत नहीं है। यानी एक आत्मविास है कि बिना सस्ती हुए भी कारें बिक जाएंगी। अखबारों में कई तरह की हाऊसिंग परियोजनाओं के इश्तिहार दिखने शुरू हो गए हैं।
बाइक कंपनी हाल्रे डेविडसन ने हीरो मोटोकोर्प के साथ समझौता अभी फाइनल किया है। इन सबका आशय यही है कि कोरोना संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था उबर रही है और इसलिए इसके भविष्य में निवेश करना ठीक है। कुल मिलाकर विदेशी निवेश से एक आत्मविश्वास से तो अर्थव्यवस्था हासिल कर सकती है, पर जमीनी हकीकतों को सिर्फ विदेशी निवेश के आंकड़ों की चमक में भुलाया नहीं जा सकता। ग्रामीण क्षेत्र में तो मनरेगा ने एक न्यूनतम राहत दी हुई है, सरकार को अब शहरी क्षेत्र के लिए भी रोजगार गारंटी योजना के बारे में सोचना चाहिए।
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