जय श्रीराम
अयोध्या में अट्ठाइस साल पहले बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को ढहाए जाने के आपराधिक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी आरोपितों को दोषमुक्त करके सर्वोच्च अदालत के फैसले के अनुरूप ही कार्य किया है।
जय श्रीराम |
यह पूरी तरह अपेक्षित फैसला है। लोकमानस में भी यह बैठा हुआ था कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं का इसमें कोई प्रत्यक्ष हाथ नहीं था। सीबीआई भी अदालत में ऐसे ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई जो जज को अपना निर्णय लेने पर बाध्य करते। इस फैसले पर लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी खुशी जताई है। उन्होंने कहा है कि बहुत दिनों बाद एक अच्छा समाचार मिला है। यह खुशी का पल है। आडवाणी ने ‘जय श्रीराम’ कहकर अपनी बात का समापन कर दिया। इसके साथ ही बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी का यह कहना कि हम कानून का पालन करने वाले मुसलमान हैं।
अच्छा हुआ जो अदालत ने सबको बरी कर दिया। यह फैसला बहुत पहले हो जाना चाहिए था। इन दोनों के बयान निष्कषर्त: पूरे विवाद को समाप्ति की ओर ले जाने वाले हैं। वैसे तो इस समूचे प्रकरण में विसंगतियों की भरमार है, लेकिन सर्वोच्च अदालत द्वारा मस्जिद के स्थान पर राममंदिर के निर्माण की अनुमति दिए जाने और मस्जिद के लिए अलग स्थान का आवंटन कर दिए जाने के बाद यह पूरी तरह से हास्यास्पद होता कि आरोपितों को उस घटना के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जिसका समापन सर्वोच्च अदालत पहले ही कर चुका है।
इस फैसले का दूसरा पक्ष यह भी है कि जिस तरह से भिन्न मत रखने वाले लोगों ने सर्वोच्च अदालत के फैसले को कठघरे में खड़ा रखने का प्रयास किया था, वे लोग इस फैसले की भी निंदा करेंगे और सीबीआई की अदालत द्वारा अराजक तत्वों द्वारा मस्जिद के ढांचे को ढहाए जाने की बात कहे जाने पर उसका मखौल भी उड़ाएंगे। किंतु अब यह फैसला चाहे कितना भी विसंगतिपूर्ण हो, लेकिन यह सभी के हित में होगा कि अब इस पूरे प्रकरण का पटाक्षेप कर दिया जाए और किसी को भी इस मुद्दे पर अपनी राजनीति चमकाने और अपने हाथ सेंकने का अवसर न दिया जाए। मंदिर-मस्जिद विवाद ने वर्षो तक नफरत की आग सुलगाए रखी है। अब इस आग को बुझा देने का समय आ गया है। इसलिए नाराज लोगों को इस फैसले की स्वीकार्यता की समझ दिखानी चाहिए।
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