ताकत बढ़ेगी सेना की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार भारतीय सेना के तीनों अंगों की सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
ताकत बढ़ेगी सेना की |
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने पिछले वर्ष करीब 130 अरब डॉलर खर्च करने की योजना की घोषणा की थी। इस महती योजना को चरणबद्ध तरीके से जमीन पर उतारा जा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने बीते सोमवार को 2290 करोड़ रुपये के हथियार एवं सैन्य उपकरणों की खरीद की मंजूरी दी है। इसमें चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर तैनात जवानों के लिए अमेरिका से 72 हजार असाल्ट राइफलों की खरीद शामिल है। जाहिर है इन अत्याधुनिक राइफलों से सेना की ताकत में कई गुना की बढ़ोतरी होगी।
वायुसेना के लिए लड़ाकू विमान और नौसेना के लिए आधुनिक पनडुब्बियां और युद्धपोत भी आगामी कुछ वर्षो में खरीदे जाएंगे। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की योजना के तहत रक्षा क्षेत्र में भी भारत के घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता दी जाएगी। पिछले दिनों भारतीय वायुसेना के बेड़े में फ्रांस निर्मित अत्याधुनिक लड़ाकू विमान राफेल के शामिल होने से पड़ोसी दुश्मन देशों की हालत पस्त हो गई है।
फिलहाल पांच लड़ाकू राफेल विमान की पहली किस्त स्वदेश आ गई है और वायुसेना के बेड़े में शामिल भी हो गई है। अगले महीने पांच और राफेल विमान मिलने की संभावना है। भारत को कुल 36 राफेल विमान मिलने हैं, जिसकी आपूर्ति 2022 तक होनी है। चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर जारी सैन्य तनाव को देखते हुए भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को लगातार मजबूत बनाते रहना होगा। यह ठीक है कि भारत की तुलना में चीन की रक्षा तैयारियां ज्यादा सुदृढ़ और मजबूत है।
इसकी बड़ी वजह दोनों देशों की परस्पर विरोधी शासन प्रणाली है। भारत एक लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्य है। इसके तहत उसे अपने बहुत सारे सामाजिक दायित्वों को पूरा करना पड़ता है। देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा वंचित लोगों और उनके हितों के लिए खर्च करना पड़ता है। इसलिए भारत रक्षा बजट में उतना व्यय नहीं कर सकता है, जितना चीन कर पाता है। यहां अभिव्यक्ति की आजादी के कारण सरकार को बहुत सारे गतिरोधों का सामना भी करना पड़ता है। विपक्ष को, जनता को और मीडिया को जवाब देना पड़ता है, जबकि चीन में सरकार की घोषित नीतियों के विरुद्ध किसी को भी बोलने की आजादी नहीं है।
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