..तो सैन्य विकल्प तैयार
भारत-चीन के बीच लद्दाख को लेकर गतिरोध अभी जारी है। कूटनीतिक एवं सैन्य स्तर पर चल रही वार्ता से अभी तक अपेक्षित परिणाम नहीं निकला है।
..तो सैन्य विकल्प तैयार |
दोनों देशों की सेनाएं पिछले करीब चार महीने से आमने-सामने डटी हुई हैं। इस बीच चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने चीन को चेतावनी भरा संदेश दिया है। जनरल रावत ने कहा है कि चीन द्वारा किए गए उल्लंघनों से निपटने के लिए हमारे सैन्य विकल्प तैयार हैं, लेकिन इन विकल्पों पर तब विचार किया जाएगा, जब कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर वार्ता विफल हो जाएगी। जनरल रावत की बातें कई मायने में विचार करने योग्य हैं।
यह सही है कि जनरल रावत ने अपने स्तर पर यह टिप्पणी की है, लेकिन इसमें भारत सरकार के छिपे हुए संदेश को भी पढ़ा जा सकता है। दूसरी बात यह है कि अभी सैन्य विकल्प अपनाने की नौबत नहीं आई है। यानी अब भी वार्ता के परिणाम का इंतजार किया जाएगा। सर्दी के मद्देनजर जिस प्रकार सैनिकों के लिए साजो-सामान की व्यवस्था की जा रही है, उससे ऐसा लगता है कि वार्ता प्रक्रिया लंबी चलेगी और उसके परिणाम की प्रतीक्षा की जाएगी।
तीसरी बात यह कि अगर चीन के खिलाफ सेना के प्रयोग की जरूरत पड़ी, तो कौन सा विकल्प आजमाया जाएगा, यह खुलासा उन्होंने नहीं किया। सैन्य रणनीति के हिसाब से वे ऐसा करेंगे भी नहीं और करना भी नहीं चाहिए, लेकिन जनरल रावत को अभी यह बात क्यों कहनी पड़ी? क्या यह वार्ता प्रक्रिया से उपजी निराशा की अभिव्यक्ति है? दरअसल, चीन की सेना अब भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास कई विवादित बिंदुओं पर बैठी हुई है और हटने को तैयार नहीं दिख रही है। उसने पैंगोंग त्सो और देपसांग में अपनी वर्तमान स्थिति से पीछे हटने से इनकार कर दिया है। ऐसे में जनरल रावत का बयान समय की मांग है, ताकि चीन को अहसास कराया जा सके कि भारत चुपचाप बैठे रहने वाला नहीं है।
ऐसा प्रतीत होता है कि चीन की दिलचस्पी मसले को बातचीत से सुलझाने में नहीं है। उसका हित इसी में है कि भारत को बातचीत में उलझाकर मसले को लटकाए रखे, क्योंकि एलएसी में कई जगहों पर कब्जा जमाए बैठे चीन को कुछ खोना नहीं है। कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि चीन की रुचि सीमा समस्या को सुलझाने में नहीं, बल्कि भारत पर जरूरत के मुताबिक दबाव बनाने के लिए उसको जिंदा रखने में है।
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