कांग्रेस की शुतुरमुर्गी नीति

Last Updated 26 Aug 2020 12:45:24 AM IST

यह असमंजस की स्थिति है कि कांग्रेस के भीतर पिछले कुछ दिनों में जो कुछ घटित हुआ, उसे हास्यास्पद कहा जाए, दुखद कहा जाए या विचारणीय कहा जाए।


कांग्रेस की शुतुरमुर्गी नीति

पार्टी के भीतर कुछ दिनों से असंतोष के स्वर तो लगातार उठ रहे हैं और इसकी ताजी घटना उस पत्र के रूप में सामने आई, जो 23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा। इस पत्र में पार्टी में फेरबदल और परिवर्तन का मुद्दा उठाने के साथ सामूहिक नेतृत्व, शक्तियों का विकेंद्रीकरण, राज्य इकाइयों को सशक्त करना और नीति निर्धारण निकाय और पार्टी की समितियों का चुनाव कराना जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे भी शामिल थे।

हालांकि ये सारे मुद्दे ऐसे नहीं हैं जिनसे सोनिया गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी गई है, लेकिन पार्टी का एक वर्ग इस पत्र को इसी रूप में प्रचारित किया। कांग्रेस का इतिहास देखा जाए तो पार्टी को जीवंत और गतिशील बनाने के लिए इस तरह के मुद्दे उठाए जाते रहे हैं, लेकिन कुछ समय पूर्व अपने लेख में इसी तरह की बातें लिखने के कारण संजय झा को प्रवक्ता के पद से हटा दिया गया था और इस बार भी वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखे गए पत्र को गंभीरता से नहीं लिया गया। इसके विपरीत सोनिया के समर्थकों ने इन पर कुछ अनर्गल आरोप भी लगा डाले कि यह पत्र भाजपा के साथ सांठ-गांठ से प्रेरित है।

पत्र लेखकों में इस आरोप की तीखी प्रतिक्रिया हुई। कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया समर्थकों की ‘जय हो’ की बुलंद आवाज के नीचे पत्र लिखने वाले कांग्रेसजनों की आवाज दबकर रह गई। तमाम आंतरिक मतभेदों, असंतोष के बावजूद कांग्रेस अपने आप को गांधी परिवार के नेतृत्व से वंचित करने की स्थिति में नहीं है। कार्यसमिति की मैराथन बैठक का कोई नाटकीय परिणाम सामने नहीं आया। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरी तरह विश्वास प्रकट किया गया।

मजेदार बात यह थी कि पत्र लेखक भाजपा जनित जिन खतरों की ओर इशारा करते हुए नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे थे, सोनिया समर्थक भी भाजपा जनित उन्हीं खतरों की दुहाई देकर गांधी परिवार के नेतृत्व को बनाए रखने की मांग कर रहे थे। यह इस बात का संकेत है कि कांग्रेस में गहरी वैचारिक दरार पैदा हो चुकी है। अगर पार्टी इस आसन्न खतरे को पहचान कर इसका निराकरण नहीं किया तो निकट भविष्य में कांग्रेस का विभाजन और बिखराव तय है। कांग्रेस को अपनी शुतुरमुर्गी नीति से बाहर आ जाना चाहिए।



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