अमन की खातिर
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर से 10 हजार अर्धसैनिक बलों (100 कंपनियां) को हटाने का महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है।
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मंत्रालय ने राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करने के बाद यह फैसला लिया है। केंद्र सरकार के इस फैसले को एक बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार का यह आकलन है कि राज्य में जनजीवन तेजी से सामान्य हो रहा है।
इसलिए सरकार यह मानकर चल रही है कि राज्य में कानून-व्यवस्था और सुरक्षा की स्थिति पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत हुई है और धीरे-धीरे राजनीतिक प्रक्रिया भी बहाल करने की जरूरत है। लोगों को याद होगा कि 5 अगस्त, 2019 को नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए समाप्त कर दिया था। इसके तहत राज्य को विशेष दरजा हासिल था। इस ऐतिहासिक कदम से राज्य का पुनर्गठन किया गया है और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया है।
अगर केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं तो उसे जल्द-से-जल्द राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली का प्रयास भी करना चाहिए। हालांकि सरकार इस दिशा में कोशिशें भी कर रही है। जी.सी. मुमरू की जगह राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल का पद सौंपे जाने का आशय भी यही निकाला जा रहा है। वह राज्य में विश्वास बहाली की दिशा में अनेक कदम भी उठा रहे हैं। सिन्हा ने नागर समाज के लोगों के साथ संवाद कायम करना शुरू कर दिया है। राज्य के विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों के साथ मिलकर वह नई शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में विचार-विमर्श कर रहे हैं।
केंद्र सरकार की योजनाओं को निचले पायदान पर खड़े लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए, इसके लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं। स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ बैठकर ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सुविधाओं को कैसे पहुंचाया जाए, इसके लिए भी लगातार विचार-विमर्श कर रहे हैं। इसका अर्थ है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में जल्द राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करना चाहती है। दरअसल, जम्मू-कश्मीर जैसे सीमावर्ती राज्यों को लंबे समय तक प्रशासनिक अधिकारियों के हवाले नहीं किया जा सकता। इसलिए अपेक्षा की जाती है कि राज्य में शीघ्र ही राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली की जाएगी।
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