बढ़ती तनातनी
जब अमेरिका और चीन का संबंध अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है, तब दो ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिससे इसमें और खटास आ जाएगी।
बढ़ती तनातनी |
एक तरफ अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स एजार ताइवान के दौरे पर पहुंचे, तो दूसरी तरफ चीन ने लोकतंत्र के हिमायती 11 अमेरिकी नेताओं और संगठनों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी। पहली घटना इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि पिछले करीब चार दशक में पहली बार अमेरिका के किसी उच्चपदस्थ अधिकारी ने ताइवान की यात्रा की है।
जाहिर है यह ‘एक चीन नीति’ के खिलाफ है, जिसके लिए चीन वर्षो से आवाज उठा रहा है। उम्मीद के मुताबिक चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। दूसरी घटना हांगकांग से जुड़ी हुई है। हांगकांग पर अपने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के थोपे जाने के बाद से चीन उससे संबंधित किसी विरोध की आवाज को दबाने के लिए तत्पर है। अमेरिकी नेताओं और संगठनों पर कार्रवाई इसी से प्रेरित है। इसके पहले अमेरिका ने चीन समर्थक हांगकांग के अधिकारियों पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की थी।
ध्यान देने की बात है कि चीन द्वारा बदले की यह कार्रवाई उस समय की गई है, जब अमेरिका की घरेलू राजनीति में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन के बीच यह बहस छिड़ी हुई है कि कौन चीन के प्रति नरम है। चीन की इस प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का असर अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन एक बात यह उभर कर सामने आ रही है कि इसमें राष्टपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के किसी व्यक्ति पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। स्वाभाविक है विपक्षी डेमोक्रेट इस पर राजनीति करेंगे, लेकिन ट्रंप के लिए भी यह उपयुक्त होगा कि वह भावी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर चीन विरोधी राजनीति की धार को तेज करें।
पिछले दिनों अमेरिका के एक खुफिया अधिकारी के हवाले से एक रिपोर्ट आई थी कि रूस डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन को और चीन ट्रंप की जीतते देखना नहीं चाहता। अगर यह सच है कि चीन, अमेरिका की घरेलू राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, तो फिर चीन से त्रस्त देशों को सोचना पड़ेगा कि अमेरिका किस प्रकार चीन को रोक पाएगा? यह तभी संभव होगा, जब अमेरिका में सत्ता किसी की भी रहे, चीन के प्रति मौजूदा नीति नहीं बदले। अगर अमेरिका की घरेलू राजनीति बाहरी ताकतों से प्रभावित हो सकती है, तो बाकी देशों के साथ क्या होता होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
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