कम हुई हिंसा
इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को प्रदत्त विशेष प्रावधान को समाप्त करने के बाद घाटी में अलगाववादी विचारधारा और आतंकी गतिविधियां दोनों को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता मिली है।
कम हुई हिंसा |
तथ्य और आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाना भारतीय जनता पार्टी का पुराना चुनावी मुद्दा था। पार्टी का विश्वास था कि इस अनुच्छेद से मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा मिल रहा है और साथ ही घाटी में अलगाववाद और आतंकवाद का पोषण हो रहा है। पिछले वर्ष आज ही के दिन (4 अगस्त) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दरजा समाप्त कर दो केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का पुनर्गठन किया था। हुर्रियत कांफ्रेंस सहित कई अन्य अलगाववादी संगठनों के नेता जेल में बंद हैं या घरों में नजरबंद हैं। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी जेल में बंद हैं। नेशनल कांफ्रेस के भी कई नेता जेल में हैं, लेकिन कश्मीर घाटी में इन नेताओं को लेकर किसी भी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। हुर्रियत कांफ्रेंस के सबसे बड़े अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी ने पिछले दिनों संगठन से इस्तीफा दे दिया।
उनके इस्तीफे के बाद ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस में टूट की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इन अलगाववादी नेताओं का कश्मीर घाटी में कोई जनाधार नहीं था। पिछले वर्ष अनु. 370 हटाने के बाद तो इनका जो थोड़ा-बहुत प्रभाव था, वह भी खत्म हो गया। सच तो यह है कि आम जनता के बीच ये अलगाववादी नेता पूरी तरह बेनकाब हो गए हैं। अलगाववादी नेताओं द्वारा पाकिस्तान में मेडिकल की सीटों को बेचने का मामला सामने आने के बाद लोगों में इनके खिलाफ बेहद गुस्सा और असंतोष का भाव है। ये वही लोग थे, जो भोले-भाले युवाओं को हिंसा की ओर धकेलकर अपना उल्लू-सीधा किया करते थे। अनु. 370 समाप्त होने के बाद ये अलगाववादी नेता घाटी में पूरी तरह अप्रासंगिक हो गए हैं। पिछले दो वर्षो के दौरान पत्थरबाजी की घटनाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो इसमें भारी कमी आई है। 2018 के मुकाबले 2019 में पथराव की घटनाओं में 27 फीसद कमी आई, वहीं 2020 में 73 फीसद कमी आई है। ये आंकड़े बताते हैं कि अनु. 370 का हटाया जाना सही कदम था।
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