अनिश्चितता का माहौल
राजस्थान उच्च न्यायालय हो या सर्वोच्च न्यायालय, दोनों ही जगहों पर अपने पक्ष में तत्काल फैसला न आने पर राजस्थान कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल ली और उसने सड़कों से लेकर राजभवन तक लड़ाई लड़ने का मन बना लिया।
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इसके तहत एक तरफ राज्यपाल पर तत्काल विधान सभा का सत्र बुलाने का दबाव डाला जा रहा है, तो दूसरी तरफ राजस्थान के विभिन्न जिलों में इसके पक्ष में धरना-प्रदर्शन भी आयोजित किए जा रहे हैं। अब इस लड़ाई के दिल्ली पहुंचने की आहट सुनाई पड़ रही है।
विधान सभा सत्र बुलाने पर अड़े मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो वे राष्ट्रपति के पास जाएंगे। अगर इससे भी बात नहीं बनी, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आवास के सामने प्रदर्शन करेंगे। खबर यह भी है कि कांग्रेस पूरे देश में राजभवन के सामने प्रदर्शन करने वाली है। जाहिर है कांग्रेस इसे लोकतंत्र बचाओ मुहिम के रूप में पेश कर यह दिखाना चाहेगी कि भाजपा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों को साजिशन गिराना चाहती है। सवाल यह है कि कांग्रेस की यह रणनीति कितनी कारगर होगी? क्या राज्यपाल की भूमिका संविधान सम्मत नहीं है?
विशेषज्ञों के अनुसार राज्यपाल के पास विधान सभा का सत्र बुलाने के बारे में ज्यादा विकल्प नहीं है, वह मंत्रिमंडल की सिफारिश के अनुसार काम करने के लिए प्राय: बाध्य है, लेकिन राजस्थान में स्थिति सामान्य नहीं लगती। अगर गहलोत सरकार द्वारा विधान सभा का सत्र बुलाने के पीछे की मंशा राजनीतिक है, तो स्वाभाविक है राज्यपाल संभल कर कदम उठाएंगे। पूछा जा रहा है कि यह सचिन पायलट खेमे के विधायकों को अयोग्य ठहराने की रणनीति का एक हिस्सा तो नहीं है? इसलिए संभव है राज्यपाल सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करें। ऐसे में राज्यपाल की भूमिका पर अभी कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी भरा कदम होगा, लेकिन राज्यपाल के प्रति गहलोत ने धमकी भरी जैसी टिप्पणी की है, वह उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह टिप्पणी न केवल लोकतांत्रिक राजनीति में अवांछित परंपरा को मजबूत करेगी, बल्कि खुद गहलोत के राजनीतिक हित में भी नहीं होगी। अगर आने वाले समय में प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हुई और राज्यपाल ने इसको मुख्यमंत्री के कथन से ही जोड़ दिया, तो उनके लिए मुश्किलें पैदा हो सकती है। अच्छा होगा कि संबंधित पक्ष सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करें।
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