बाढ़ का कहर

Last Updated 28 Jul 2020 12:23:16 AM IST

बिहार और असम की जनता अब तक के अपने सबसे बुरे दौर में हैं। एक तरफ कोरोना विषाणु का महासंकट है तो दूसरी तरफ उफनाती नदियों के चलते उत्तरी बिहार और असम की जनता त्राहिमाम है।


बाढ़ का कहर

बिहार में हालात ज्यादा संजीदा हैं। यहां के गोपालगंज, मोतिहारी, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए हैं। लोग जान बचाने के लिए घर का सामान और मवेशी छोड़ नेशनल हाईवे और दूसरे ऊंचाई वाले स्थानों पर शरण लिये हुए हैं। नदियां विकराल रूप में है। गांव के गांव पानी में समाते जा रहे हैं। बिहार के 12 जिलों की 14,95,132 लोगों की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। असम और बिहार में बाढ़ से करीब 40 लाख लोग प्रभावित हैं।

बिहार के बाढ़ प्रभावित इन जिलों में बचाव और राहत कार्य चलाए जाने के लिए भले एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की 25 टीमों की तैनाती की गई है, मगर हालात ज्यादा खराब होते जा रहे हैं। असम की बात करें तो यहां 2409 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। करीब 24.58 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में है। अब तक 120 लोगों की मौत हुई है। इसमें 97 लोग बाढ़ से मारे गए हैं, जबकि 23 लोगों की मौत भू स्खलन की वजह से हुई है।

वैसे बिहार और असम में बाढ़ की विभीषिका हर वर्ष की नियति हैं। मगर सरकार का ध्यान इस ओर बिल्कुल भी नहीं होता है। आखिर बाढ़ आने के पीछे की एकमात्र वजह ज्यादा बारिश और नेपाल द्वारा पानी छोड़ना नहीं है। इसके अलावा बाढ़ को लेकर किसी तरह की कोई ठोस, नियोजित और ईमानदार नीति की घोर कमी सरकार के स्तर पर दिखती है। बेइंतहा भ्रष्टाचार, सरकारी तंत्र का बेपरवाह होना भी बाढ़ के कहर की बड़ी वजह हैं। आखिर कोई तटबंध करोड़ों खर्चने के बावजूद कैसे ताश के पत्तों की तरह भरभराकर गिर जाते हैं?

वहां की जनता को भी समझदार और दूरदर्शी होना पड़ेगा। नदी किनारे बनाए गए घर और अन्य निर्माण कार्य की वजह से नि:संदेह नदियों के पाट सिकुड़ते चले जा रहे हैं। सरकार को इन सब बातों को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करनी होगी। अभी बाढ़ का प्रकोप और कितने दिनों तक चलेगा, यह तो इसका एक पक्ष है, किंतु पानी उतरने के बाद विभिन्न बीमारियों से लड़ना भी कम दुष्कर काम नहीं है। सरकार को तत्काल युद्धस्तर पर हर साल आने वाली बर्बादी को खत्म करने के लिए आगे आना होगा।



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