विवाद नहीं हल तलाशिए
देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है। मंगलवार को दिल्ली स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की बैठक में दिल्ली सरकार की तरफ से उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल के फैसले पर सवाल भी उठाया।
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दिल्ली में अभी 12 से 13 दिनों में कोरोना के केस दोगुने हो जा रहे हैं। मरीजों की तेजी से बढ़ती संख्या को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच तनातनी भी दिख रही है।
कोरोना से बचाव की तैयारियों के बीच मनीष सिसोदिया ने कहा कि जुलाई तक सूबे में 5.5 लाख मरीज होंगे। अभी जो आंकड़ा प्रस्तुत किया गया है, उसमें बताया गया है कि 30 जून तक कोरोना के मरीजों के लिए दिल्ली में 33 हजार बेड की जरूरत होगी और 31 जुलाई तक 80 हजार बेड की जरूरत होगी।
इसी तरह मामले तेजी से बढ़ते जाएंगे और इसके अनुपात में बेड की आवश्यकता भी होगी। इस दलील में या आकलन में कुछ भी अचरज भरा नहीं है। मसला ज्यादा गंभीर इसलिए है क्योंकि दिल्ली सरकार ने पहले अपनी तैयारियां ज्यादा चौकस और व्यापक स्तर पर सार्वजनिक की थीं। निश्चित तौर पर दिल्ली के अस्पतालों में आसपास के राज्यों के मरीजों का भारी दबाव रहता है।
और जिस तरह से आधे मरीजों का स्रोत पता नहीं चल रहा, उससे कोरोना के सामुदायिक संक्रमण के स्तर पर फैलने का खतरा बढ़ रहा है। हालांकि दिल्ली सरकार के सामुदायिक संक्रमण होने के दावों को केंद्र सरकार के अधिकारियों ने खारिज कर दिया, मगर इस तथ्य से आंखें मूंद लेना समझदारी नहीं होगी। अगर दिल्ली सरकार का आकलन यह कह रहा है कि यहां सामयुदायिक संक्रमण हो गया है तो इसका खंडन करने के बजाय इस बारे में केंद्र सरकार को ज्यादा सतर्क होने की आवश्यकता है क्योंकि भारत में कोरोना की रफ्तार अब सबसे तेज है। अमेरिका, रूस और ब्रिटेन की गति से भारत काफी आगे चल रहा है।
देश में रोजाना 10 हजार संक्रमित मिल रहे हैं। दिल्ली की बात करें तो यहां 29 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं। लिहाजा केंद्र और राज्य सरकार के बीच बेवजह विवाद से जनता को दुारियां न उठानी पड़े इसका ख्याल रखने की जरूरत है। चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि और जरूरतमंदों तक सही इलाज से ही कोरोना के खिलाफ जीत हासिल संभव है।
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