वार्ता से उम्मीद
पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन के बीच बना तनाव अभी बरकरार है, लेकिन इसे शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच प्रयास जारी हैं।
वार्ता से उम्मीद |
इस कड़ी में शनिवार को दोनों देशों के सैन्य स्तर की फिर बातचीत हुई। इस बार भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व 14वीं कार्प के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया, जबकि चीनी सेना का पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के दक्षिण झिंजियांग सैन्य क्षेत्र के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन ने किया। बातचीत करीब साढ़े पांच घंटे चली।
भारत पांच मई से पूर्व की स्थिति बहाल करना चाहता है। इसके तहत उसने गलवान और पेंगोंग लेक के उत्तरी क्षेत्र में घुसी चीनी सेनाओं की वापसी की मांग की। दूसरी ओर चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास भारत द्वारा कराई जा रही निर्माण गतिविधियों को रोकने को कहा। बातचीत का विस्तृत ब्योरा सामने नहीं आ सका, लेकिन इतना स्पष्ट है कि अभी कोई समाधान नहीं निकल पाया है। तत्काल इसकी कोई उम्मीद भी नहीं कर रहा था। ऐसा नहीं था कि मौजूदा मसले पर यह पहली बातचीत थी। इसके पहले सेना के निचले स्तर के अधिकारियों के बीच वार्ता चल रही थी, उसी प्रक्रिया में यह वार्ता इस स्तर पर आई है। राजनयिक स्तर पर भी वार्ता हो रही थी।
उम्मीद की जा सकती है कि यह वार्ता विभिन्न स्तरों पर और आगे बढ़ेगी। जरूरत पड़ी तो राजनीतिक हस्तक्षेप का भी सहारा लेना पड़ सकता है। ऐसा समझा जा सकता है कि मसले का समाधान निकलने में अभी और समय निकलेगा। भारत को इसके लिए मानसिक स्तर पर तैयार रहना होगा, क्योंकि चीन की दिलचस्पी मामले के जल्द समाधान में नहीं लगती। चीन की आंतरिक स्थिति और भू-राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनजर सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीन इसे लंबे समय तक खींचना चाहेगा। अगर ऐसा होता है, तो दोनों देशों की सेनाएं वहां एक दूसरे के सामने डटी रहेंगी।
दरअसल, चीन अपनी सरकारी मीडिया के जरिये एक मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रहा है। भारत को भी इस पहलू को नजरंदाज नहीं करना होगा। अच्छी बात यही है कि दोनों देश मामले को बातचीत के द्वारा सुलझाने के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मसला बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है। ध्यान देने की बात है कि दोनों देशों के जवानों के बीच धक्का-मुक्की जरूर हुई है, लेकिन एक भी गोली नहीं चली है।
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