चिंता की बात

Last Updated 25 May 2020 01:53:13 AM IST

देश में कोरोना वायरस मामलों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। पिछले पांच दिनों के दौरान मामलों में बढ़ोतरी ज्यादा हुई है।


चिंता की बात

माना जा रहा है कि प्रवासी मजदूरों का शहरों से अपने-अपने गांवों की ओर पलायन करने से कोरोना महामारी के फैलाव में तेजी आई है। प्रवासी मजदूरों का पलायन अप्रत्याशित था। केंद्र और राज्य सरकारों ने कोरोना के नियंत्रण के लिए जो योजनाएं बनाई थीं, और जो कदम उठाए थे उनमें इस तरह के पलायन की कोई पूर्व कल्पना शामिल नहीं थी।

माना जा रहा था कि जो भी प्रवासी मजदूर यहां हैं वे कोरोना काल की समाप्ति तक वहीं रुकेंगे। अब उनके खाने-पीने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाएगी। लेकिन राज्य सरकारें इनके लिए समुचित भोजन-पानी की व्यवस्था नहीं कर सकीं और वो जो कुछ कर भी रहीं थीं, तो इन मजदूरों को आस्त नहीं कर सकीं कि वे जहां हैं वहीं रहें और उनकी समस्याएं हैं तो उनका समुचित निराकरण किया जाएगा।

मजदूरों के बीच से जो आपातकालीन नेतृत्व उभरा, वह सरकार समर्थक नहीं था। और उसमें मजदूरों से यह आग्रह नहीं था कि वे पलायन नहीं करें। रोजी-रोटी की जो भी उनकी तत्कालीक समस्याएं हैं, उनको सरकार तक पहुंचाया जाएगा और उनका प्रभावी निराकरण किया जाएगा। इसके विपरीत मजदूरों की छोटी सी कठिनाइयों को भी बहुत बड़ा बना दिया गया। वास्तव में यह नियोजित प्रयास था या स्वत: स्फरूत था यह जांच का विषय हो सकता है, लेकिन मजदूरों के मन में यह बैठा दिया गया कि वे अपने शहरों में सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए भी मजदूर समूह में हजार-हजार किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। कोई भी कल्पना कर सकता है कि शहर का उनका प्रवास किसी भी सूरत में हजार किलोमीटर की उनकी पदयात्रा से ज्यादा कठिन नहीं था।

इसका अर्थ यह था कि सरकारी प्रयासों के प्रति उनके मन में गहरा अविश्वास बिठा दिया गया। उनके पलायन के कारण ही सरकार को प्रतिबंधों से छूट देकर उनके गृहस्थानों तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी पड़ी। अब तो यह संकेत मिल रहे हैं कि इन मजदूरों के साथ-साथ दूरदराज क्षेत्रों तक कोरोना भी पहुंच रहा है। अब सरकार के आगे दोहरी चुनौती है कि इन मजदूरों को बीमारी और बेरोजगारी से कैसे बचाएं? देखना होगा कि सरकारें इस अग्निपरीक्षा से कैसे पार पाएंगी?



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