चौकसी के साथ वार्ता

Last Updated 21 May 2020 01:11:33 AM IST

भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी करके अप्रिय स्थिति पैदा कर दी है।


चौकसी के साथ वार्ता

इस नये नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पइयाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है। दोनों देशों के बीच जो नया तनाव पैदा हुआ है, उसका कारण एक नई सड़क है, जो लिपुलेख के कालापानी क्षेत्र से होते हुए गुजरती है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों इस सड़क का उद्घाटन किया था। इस क्षेत्र पर दोनों देश अपना दावा करते हैं कि ये उनका है। इस दावे और प्रतिदावे का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन असलियत यह है कि यह क्षेत्र बहुत लंबे समय से भारत के अधिकार क्षेत्र में है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक महत्त्व का भी है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब से इस सड़क का उद्घाटन किया है, तब से नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा है। नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने पिछले दिनों भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रो को तलब कर किया था  और नाराजगी प्रकट करते हुए पूछा था कि नेपाल की जमीन पर भारत ने अपनी सड़क कैसे बना ली है? इन दिनों नेपाल में देश के भूभाग को लेकर अतिवादी राष्ट्रवादी भावनाएं उभार पर है। वास्तव में नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं की एक राजनीतिक पृष्ठभूमि भी है।

वहां की राजनीति में दो खेमे हैं। भारत विरोधी और भारत समर्थक। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां भारत विरोधी भावनाओं का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। इस समय वहां कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा हैं जो भारत विरोधी और चीन समर्थक माने जाते हैं। जाहिर है उनके प्रधानमंत्री रहते भारत और नेपाल के बीच अच्छे संबंधों की कल्पना नहीं की जा सकती। ओली इन दिनों अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड और माधव कुमार नेपाल की ओर से चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। चीन की मध्यस्थता से किसी तरह पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं के बीच सुलह-समझौता हो पाया है।

प्रचंड माओवादी नेता रहे हैं इसलिए आक्रामक भी हैं। प्रधानमंत्री पर वह दबाव डाल रहे हैं कि भारत के साथ सीमा विवाद को हल करने के लिए कूटनीति के साथ-साथ कड़ाई से भी काम लिया जाए। सीमा संबंधी विवादों को सुलझाने के लिए भारत को नेपाल के साथ बातचीत करने की पहल करनी चाहिए। लेकिन उसे चौकस रहते हुए चीन समर्थक ओली की नीतियों पर अंकुश भी लगानी चाहिए।



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