खेती संतोषजनक
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह कहना पूरे देश को राहत देने वाला है कि कोरोना संक्रमण के प्रकोप के बावजूद कृषि इससे अप्रभावित है।
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अगर उनकी यह सूचना सही है कि कोरोना की वजह से फसल की कटाई और बुवाई पर कोई असर नहीं पड़ा है, तो फिर मान कर चलना होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था के धाराशायी होने की जो भविष्यवाणी की जा रही है वैसा नहीं होगा। अगर वाकई 2019-20 में कृषि विकास दर 3.71 प्रतिशत रहेगी तो यह असाधारण स्थिति होगी।
नीति आयोग ने भी तीन प्रतिशत का ही आकलन किया था। 1961 के बाद पहली बार कृषि की विकास दर इतनी ज्यादा होगी। सरकार के पास आई सूचना के अनुसार गेहूं की 88 प्रतिशत कटाई हो चुकी है। यही नहीं फसल की बुवाई 57.07 लाख हेक्टेयर है जो पिछले वर्ष से 38 प्रतिशत अधिक है। लॉकडाउन के पहले चरण में भय और पुलिस के स्वाभाविक दबाव के बावजूद दलहन और तिलहन की शत-प्रतिशत कटाई पूरी होना भी उत्साहवर्धक है। वैसे कोरोना प्रकोप को देखते हुए केंद्र ने कई कदम भी उठाए हैं। मसलन, चना और मसूर की खरीद के लिए हमेशा राज्य प्रस्ताव भेजते हैं लेकिन इस बार उनके प्रस्ताव का इंतजार किए बिना केंद्र ने पहल करके राज्यों को कहा कि वे जब खरीद शुरू करेंगे तो उससे 90 दिन दिए जाएंगे।
इस साल अप्रैल में पिछले साल की तुलना में खाद की 5 प्रतिशत और बीज की 20 प्रतिशत खपत बढ़ने का अर्थ बताने की आवश्यकता नहीं है। मानसून सामान्य रहने के कारण कृषि के लिए पानी की उपलब्धता भी 40 से 60 प्रतिशत है। मनरेगा कृषि एवं ग्रामीण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मनरेगा के 12 करोड़ जॉब कार्डधारक हैं। सरकार ने न केवल मई और जून के लिए 20 हजार करोड़ रु पये की मंजूरी दी है, बल्कि बकाया राशि का शत-प्रतिशत भुगतान अप्रैल के पहले सप्ताह में ही कर दिया गया है। एक करोड़ 70 लाख से अधिक मानव दिवस सृजित हो चुके हैं।
मनरेगा में निर्धारित 264 कार्यों में से 162 कार्य खेतीबाड़ी से संबंधित हैं। कृषि मंत्री की मानें तो 2019-20 में मनरेगा का 66 प्रतिशत धन कृषि कार्यों पर खर्च हुआ था और चालू वर्ष में यह 77 प्रतिशत खर्च होगा। अगर ये सारे आंकड़े सही हैं और चूंकि मंत्री बता रहे हैं, इसलिए हमें सही मानना होगा, तो मानकर चलना चाहिए कि कृषि अर्थव्यवस्था को बचाने का ठोस आधार प्रदान कर देगी।
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