चिंताजनक हत्या
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के गांव पगोना के शिवमंदिर में रहने वाले दो साधुओं की निर्मत हत्या दिल दहलाने वाली है। उस पर हो रही राजनीति कहीं ज्यादा दुखद है।
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महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की पुलिस और वन अधिकारियों के सामने पीट-पीट हत्या के बाद चुप्पी साधे नेताओं और एक्टिविस्टों ने जिस तरह अपना मुंह खोला उसे पाखंड के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का उत्तर प्रदेश के अपने समकक्ष योगी आदित्यनाथ को फोन करना केवल राजनीति थी। ठाकरे सेक्युलर चेहरे और हिन्दुत्व की चिंता करने वाले की छवि के बीच झूल रहे हैं।
पालघर की घटना ने उनके शासन में कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़ा कर दिया है तो इससे उबरने के लिए उन्होंने फोन कर अपने प्रदेश की जनता को बिना कहे संदेश देने की कोशिश की कि उत्तर प्रदेश में ऐसा ही हुआ है। इसी तरह प्रियंका वाड्रा ने ट्वीट कर दिया, जबकि पालघर पर वो चुप्पी साधे रहीं। देश की जनता सब देख रही है। अभी तक की जानकारी में एक नशेड़ी ने निजी खुन्नस से इतना जघन्य कांड कर दिया जिसे जनता ने पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया है। जब तक नये तथ्य सामने नहीं आते यही मानकर चलना होगा कि यह केवल एक व्यक्ति का अपराध है।
हत्या किसी की कहीं और किसी तरीके से हो वह कानून व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करती है लेकिन किसी अन्य घटना से तुलना करते हुए उसके आयामों, कारकों, तरीकों और प्रकृति को नहीं भूलना चाहिए। पालघर मामले से इसकी तुलना घटिया राजनीति के सिवा कुछ नहीं है। पालघर में जो कुछ पता चल रहा है साधुओं की हत्या जानबूझकर अतिवादी समूहों ने लोगों को उकसा कर करवाई। भीड़ का घंटों तक वहां आक्रोश व्यक्त करना तथा पुलिस को साधुओं को उनके हवाले सौंपने की स्थिति पैदा कर देना बड़ी साजिश का हिस्सा नजर आ रहा है।
उसका उद्देश्य संभवत: हिन्दुत्व के लिए काम करने वाले संगठनों और व्यक्तियों को डराकर निष्क्रिय कर देना या भगा देना तथा भाजपा के जनाधार को कमजोर करना जान पड़ता है। बुलंदशहर की हत्या में ऐसा किसी तरह का संकेत अभी नहीं मिला है। बावजूद हम चाहेंगे कि पगोना के साधुओं की हत्या की हर संभावित दृष्टिकोणों से जांच हो तथा पूरा सच सामने लाया जाए। देश के ज्यादातर साधू बिना सुरक्षा एवं विशेष सुविधा के पूजा, प्रवचन और साधना में रत रहते हैं। इस तरह उनकी हत्या असह्य है।
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