देशहित का संबोधन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से तीखा मतभेद रखने वालों की देश में बड़ी संख्या है। जाहिर है, जब संघ प्रमुख मोहन भागवत के वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका पर ऑनलाइन संबोधन करने की खबर आई, सबकी नजरें लगी हुई थीं।
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लेकिन भाषण के अंत के साथ किसी के लिए आलोचना या विरोध का एक शब्द नहीं मिल सका। वास्तव में भागवत का पूरा भाषण संकट के समय देशवासियों को धैर्य रखने, उत्तेजना से बचने, बिना भेदभाव के सेवा करने तथा समय का लाभ उठाते हुए भारत के लिए इसे अवसर में बदलने की प्रेरणा पर केंद्रित था।
भागवत को मालूम था कि इस समय ऐसी कई घटनाओं से देश में उत्तेजना का माहौल है, जिसे संभाला नहीं गया तो स्थिति बिगड़ सकती है। तब्लीगी जमात के लोगों की कोरोना संक्रमण में भूमिका तथा स्वास्थ्यकर्मिंयों एवं पुलिसवालों के साथ हिंसक व्यवहार के कारण पूरे देश में गुस्सा है। सबको उम्मीद थी कि इसके खिलाफ वे जरूर बोलेंगे। भागवत ने यह कहकर विरोधियों को निराश कर दिया कि कुछ लोगों की गलतियों के कारण पूरे समुदाय को दोषी मानकर व्यवहार करना ठीक नहीं है।
उकसाने वाले लोग ऐसे मौकों की ताक में रहते हैं ताकि क्रोध पैदा हो। भागवत ने स्पष्ट कहा कि ऐसे लोगों को सफल नहीं होने देना है। हमारे लिए सभी 130 करोड़ भारतवासी हैं। इसी तरह पालघर में साधुओं की हत्या की उन्होंने आलोचना की, लेकिन यह भी कहा कि धैर्य से ही काम लेना होगा। धैर्य की बात उन्होंने कई बार की। वास्तव में देशहित को अपना सर्वोपरि मानने वाले किसी संगठन और उसके प्रमुख की यही भूमिका इस समय यथेष्ट मानी जाएगी। भागवत का भाषण केवल संघ के स्वयंसेवकों के लिए नहीं, सभी भारतवासियों के लिए दिशा-निर्देश जैसा था। संकट को अवसर में बदलकर हमें भारत को विश्व का सिरमौर बनाना है।
उनके यह कहने का अवश्य असर हुआ होगा कि भारत ने प्रतिबंध हटाकर हाइड्रोक्लोरोक्विन के निर्यात का जो फैसला किया वही भारत का चरित्र है। हम अपनी चिंता करते हैं, लेकिन विश्व की चिंता से परे नहीं रहते, बल्कि स्वंय कष्ट उठाकर भी विश्व मानवता की सेवा भारत का दायित्व है। संकट में उभरती समस्याओं को देखते हुए विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने तथा स्वदेशी अपनाने पर बल बिल्कुल उचित सलाह माना जाएगा और इसके साथ यह कि स्वदेशी सामग्रियां गुणवत्ता के स्तर पर विश्व की श्रेष्ठ सामग्रियों के अनुरूप हों; इसके लिए निर्माताओं को तैयारी करनी होगी।
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