सराहनीय फैसला
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए 50 हजार करोड़ राशि की व्यवस्था कोरोना संकट से दबाव में आए वित्तीय बाजार को बचाने की एक ठोस और उचित पहल है।
![]() सराहनीय फैसला |
जैसा हम जानते हैं खैंकलिन टेम्पलटन म्यूचुअल फंड कंपनी ने अपनी छह बांड योजनाओं को बंद करने की घोषणा कर दी है। स्वाभाविक ही इसको लेकर सरकार से लेकर सभी नियामक एजेंसियां चिंतित हैं।
आशंका यह है कि संकट अन्य म्यूचुअल फंड कंपनियों को भी अपने जद में ला सकती है। ऐसा हुआ तो यह पूरे वित्तीय बाजार ही नहीं, अनेक क्षेत्रों की फंडिंग व्यवस्था को चरमरा देगी। निवेशकों के लिए तो खैर समस्या पैदा होगा ही। रिजर्व बैंक ने इस कदम से ऐसी स्थिति से म्यूचुअल फंड कंपनियों को बचाने की व्यवस्था आरंभ की है। यह धन बैंकों को दिया जाएगा, जो अगले तीन महीने तक इसमें से म्यूचुअल फंड कंपनियों को आसानी से कर्ज दे सकते हैं।
आलोचक भूल रहे हैं कि इस तरह का कदम 2013 में भी उठाया गया था, जब रिजर्व बैंक ने 25 हजार करोड़ की राशि निर्गत की थी। 2008 में लेहमन ब्रदर्स बंद होने के संकट के दौरान भी यूपीए सरकार ने म्यूचुअल फंड कंपनियों को विशेष तौर पर अतिरिक्त नकदी सहायता दी थी। कोरोना कोविड-19 प्रकोप की वजह से शेयर बाजार के साथ ही कारपोरेट सेक्टर एवं सरकारी बांड्स बाजार की स्थिति खस्ताहाल है। इसमें निवेश करने वाले फंड्स के रिटर्न का स्तर काफी नीचे आ चुका है। इस हालात में बड़ी संख्या में निवेशक अपना धन वापस निकालने के लिए आगे आ रहे हैं। इससे कंपनियों को धन की समस्या हो रही है। रिजर्व बैंक की यह राशि रेपो दर व्यवस्था के तहत ही फंड कंपनियों को मिलेगी ताकि उन पर अतिरिक्त भार न बढ़े।
वस्तुत: 90 दिनों के लिए राशि बैंकों को रेपो रेट पर मिलेगी और बैंकों से यह राशि फंड कंपनियों को दी जाएगी, जिसे वे निवेशकों की अदायगी में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह समझना गलत होगा कि सारी फंड प्रबंधन कंपनियों के समक्ष भुगतान की समस्या है। समस्या अभी डेट से जुड़े फंड्स यानी मुख्य तौर पर ज्यादा जोखिम वाले बांड म्यूचुअल फंड तक ही समस्या सीमित है, जबकि अन्य कंपनियों/ योजनाओं की नकदी स्थिति सामान्य है। तो कंपनियों की भुगतान समस्या कम होगी और निवेशकों का विश्वास भी कायम होगा कि उनका धन डूबने वाला नहीं है। इस नाते यह उचित कदम है।
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