निंदनीय कृत्य
महाराष्ट्र के पालघर जिले में बीच सड़क पर जूना अखाड़ा के दो साधुओं तथा उनके कार चालक की उन्मादित भीड़ द्वारा पीट-पीट कर की गई हत्या से पूरे देश में आक्रोश व्याप्त है।
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संत संगठनों ने लॉक-डाउन के बाद महाराष्ट्र कूच का आह्वान कर दिया है तथा लंबे अहिंसक संघर्ष की तैयारी चल रही है। यह स्वाभाविक भी है। उन साधुओं का दोष इतना ही था कि गुजरात के सूरत में अपने अखाड़े के एक साधु की मृत्यु के कारण उनको समाधि देने जा रहे थे।
उनकी हत्या के जो वीडिया सामने आए हैं वे किसी का कलेजा कंपा देने के लिए पर्याप्त हैं। इन वीडियो में गुस्सा पैदा होने के तत्व व्यापक स्तर पर मौजूद हैं। एक बार पुलिस की सुरक्षा में आ जाने के बाद किसी की इस तरह हत्या हो जाए इससे बुरी स्थिति कुछ हो ही नहीं सकती। किंतु उनकी सुरक्षा के लिए कुछ करने के लिए तैयार ही नहीं दिखती। पुलिस वन विभाग की चौकी से 70 वर्षीय साधु को बाहर लाकर भीड़ का शिकार होने के लिए छोड़ देती है। बेचारा साधु पुलिस की आड़ में छिपना चाहता है, लेकिन वह उसका हाथ पकड़कर भीड़ को दे देता है।
पुलिस न भीड़ को चेतावनी देती है न हवाई फायर तक करती है। सड़क पर जमा लोग खुलेआम लॉक-डाउन की धज्जियां उड़ा रहे हैं किंतु पुलिस उन्हें यह भी बताने की कोशिश नहीं करती कि आप अपराध कर रहे हैं और आपके खिलाफ कार्रवाई होगी। इससे कई प्रकार का संदेह पैदा होता है। हालांकि पुलिस ने 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है और कानूनी कार्रवाई हो रही है, लेकिन इससे संतुष्ट होना कठिन है। आखिर उतनी संख्या में लोगों को उकसाकर सड़क पर उतारने के पीछे कौन सी शक्तियां थीं यह देश के सामने आना चाहिए।
यह पता चला है कि इस घटना के दो दिनों पहले वहां से गुजरने वाले स्वास्थ्यकर्मिंयों की टीम पर भी जानलेवा हमला हुआ था। इसकी सूचना पुलिस को थी। बावजूद पुलिस ने यदि वहां पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं की। वास्तव में निर्दोष साधुओं की हत्या महाराष्ट्र पुलिस एवं प्रशासन की आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। इस हत्या के पीछे साजिश की गंध भी साफ तौर पर आ रही है। इसलिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इसे एक सामान्य अपराध की तरह न लें। पुलिस वालों पर भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए। सीआईडी की जगह विशेष जांच दल का गठन हो ताकि इसके सारे पहलुओं की ठीक से जांच हो सके।
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