इस्लामी विवेक को चुनौती
अचानक ही राजधानी दिल्ली में निजामुद्दीन स्थित तब्लीग-ए-जमात का मरकज कोरोना के मरकज के रूप में उभरकर सामने आया है।
इस्लामी विवेक को चुनौती |
यह जमात इस्लामिक प्रचार-प्रसार का केंद्र है और यहां देश और विदेश के लोग आकर ठहरते हैं। जब कोरोना वायरस के कारण मरकज में एक व्यक्ति की मौत हुई तो जो तथ्य उभरकर सामने आया कि यहां करीब 1800 से ज्यादा लोग देश के विभिन्न राज्यों से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी तब्लीग-ए-जमात में हिस्सा लेने आए हुए थे।
इनमें से करीब 334 लोगों को अस्पताल में और करीब 700 लोगों को क्वारंटिन में रखा गया है। हैरानी की बात यह है कि जमात और मरकज का संचालन करने वाले सभी लोगों को अच्छी तरह से मालूम था कि विव्यापी कोरोना भारत में भी फैल रहा है। भारत सरकार ने एक स्थान पर 50 से ज्यादा लोगों के एकत्रित होने पर प्रतिबंध लगा रखा था। सभी लोग यह जानते थे कि धरना-प्रदर्शन पर रोक लगी है। अब इस बात का उत्तर क्या है कि क्यों ये लोग इतनी बड़ी संख्या में मरकज में एकत्रित हुए? इन्हें घर वापस जाने के लिए क्यों नहीं कहा गया?
आखिर क्यों इन्होंने कोरोना की गंभीरता को नहीं समझा और सरकार के किसी भी आदेश का पालन नहीं किया। आखिर क्यों इन्होंने अपने साथ-साथ हजारों लोगों की जिंदगियों को मौत के खतरे में ढकेला? मरकज में आए हुए लोग देश के विभिन्न हिस्सों में गए। इनमें से अभी तक एक की कश्मीर में मौत हुई और तेलंगाना में 9 लोगों की मौत हुई। अब सरकार इनके खिलाफ चाहे जो कार्रवाई करे, लेकिन सवाल यह है कि इस डरावनी मानसिकता का उपचार क्या है?
पत्रकारों ने जब मरकज का संचालन करने वाले लोगों से इस बाबत सवाल पूछे तो उनमें से किसी ने भी समझ में आने वाला कोई जवाब नहीं दिया। सवाल यह है कि किसी भी सम्य, लोकतांत्रिक, अग्रगामी और वैज्ञानिक चेतना वाले समाज के पास ये जड़ता का कोई उत्तर संभव है? सच तो यह है कि ऐसे लोग सीधे-सीधे इस्लाम को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं। आज का इस्लामिक समाज मध्ययुगीन समाज नहीं है बल्कि आधुनिक व्यवस्थाओं का सम्मान करने वाला, स्थितियों को विवेक के परिप्रेक्ष्य में समझने वाला समाज है। लेकिन मरकज के जैसे लोग इस्लाम के नाम पर इस्लाम की ही बहुत भद्दी तस्वीर पेश करते हैं। इनके विरुद्ध कोई सरकार नहीं सिर्फ विवेकवान मुसलमान ही लड़ सकते हैं। इन्हें अपनी भूमिका निभाने के लिए आगे आना चाहिए।
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