घातक प्रवृत्ति
समूचे देश में लॉक-डाउन की घोषणा के बाद राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों से श्रमिकों का अपने घर वापसी का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
घातक प्रवृत्ति |
हालांकि श्रमिकों के पलायन को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए राज्यों और जिलों की सीमाओं को सील करने का निर्देश जारी किया है। सरकार ने यह निर्देश भी जारी किया है कि अगर नागरिकों ने लॉक-डाउन का उल्लंघन किया तो डीएम और एसएसपी इसके लिए जिम्मेदार होंगे। इसका आशय है कि इन प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी, लेकिन आश्चर्य है कि सरकार, पुलिस और प्रशासन की सख्ती के बावजूद बीते रविवार और सोमवार को दिल्ली-हरियाणा और दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमाओं पर पलायन करने वाले गरीब श्रमिकों का जमावड़ा इकट्ठा हो गया।
हालांकि पुलिस उन्हें आगे नहीं जाने दे रही है और उनसे अपने घरों की ओर लौटने की अपील भी कर रही है। बहुत सारे लोग एनएच-24 पर रुके हुए हैं। यहां यह समझने की जरूरत है कि आखिर यह किस बात का संकेत है? पहली नजर में तो यही लगता है कि बिहारी मजदूरों को कोरोना जैसी खतरनाक और जानलेवा महामारी से उतना भय और दहशत नहीं है, जितना कि लॉक-डाउन से पैदा हुई रोटी, कपड़ा और मकान का असुरक्षा भाव। हालांकि केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि दिल्ली छोड़कर कोई कहीं जाए नहीं।
उनके भोजन, आवास और रोजमर्रा की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति सरकार करेगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मकान-मालिकों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि वे भाड़ा पर रहने वाले लोगों से जबरदस्ती भाड़ा न वसूलें। लेकिन यह विडंबना है कि सरकार की अपील का इनपर कोई असर नहीं हो रहा है। इसकी दो वजह हो सकती हैं। पहला, सरकार की घोषणाएं कागजी हैं जिन पर आमजन का भरोसा नहीं है।
इसे दूसरे शब्दों में भी कहा जा सकता है कि सरकार असुरक्षाबोध से ग्रसित श्रमिकों को आश्वस्त करने में पूरी तरह विफल रही है। दूसरे, राजनीतिक नेताओं और जनता के बीच का फासला काफी चौड़ा हो गया है। अगर ऐसा है तो लोकतंत्र के लिए यह प्रवृत्ति काफी खतरनाक है और इस प्रवृत्ति पर राजनीतिक-समाजशास्त्रीय पहलू से अध्ययन की आवश्यकता है कि आखिर ये दिहाड़ी मजदूर जान जोखिम में डालकर लॉक-डाउन का उल्लंघन क्यों कर रहे हैं?
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