सिर्फ कोरोना नहीं
वित्तीय कारोबार से जुड़ी ब्रिटिश फर्म बार्कलेज का अनुमान है कि कोरोना के असर के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी में 2 दशमलव बिंदु की गिरावट देखने को मिल सकती है।
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अंतरराष्ट्रीय संगठन-ओईसीडी-आर्गनाइजेशन फार इकोनोमिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट के आकलन के मुताबिक समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था का विकास 2020 में 2.4 प्रतिशत की दर से होगा, नवम्बर में इसका आकलन था कि यह विकास दर 2.9 प्रतिशत रहेगी। 2.4 प्रतिशत 2009 के बाद सबसे निचला स्तर है।
चीन को लेकर इसका आकलन है कि 4.9 प्रतिशत विकास दर रहेगी 2020 में पहले इसका आकलन 5.7 प्रतिशत का था। कोरोना-जनित भय से कच्चे तेल के भाव गिरे हैं। हाल में सऊदी अरब और रूस में कच्चे तेल के भावों पर कीमत युद्ध शुरू हो गया है । एक आकलन के अनुसार कच्चे तेल की इंडियन बास्केट की कीमत में कमी से भारतीय अर्थव्यवस्था को 2020-21 में 17 अरब डालर का फायदा हो सकता है, आयात बिल में करीब 17 फीसद की कमी हो सकती है। जनवरी 2020 में इंडियन बास्केट के भाव 64 डालर प्रति बैरल थे, यह गिरकर फरवरी में 55 डालर पर आए। पचास डॉलर के आसपास भाव रहने के आसार हैं। कच्चे तेल के भावों में गिरावट की वजह से तमाम अर्थव्यस्थाओं में मंदी आएगी यानी उन देशों में मांग भी गिरेगी।
कुल मिलाकर विश्व अर्थव्यवस्था के सामने सिर्फ कोरोना ही चुनौती नहीं है। कोरोना वायरस के चलते चीन में फैक्टरियां ठप हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.57 अरब डॉलर का था। अप्रैल नवम्बर 2019 के बीच चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 35.32 अरब डॉलर का था, यानी भारत ने चीन को माल बेचा कम और खरीदा ज्यादा। अब चीन से माल ही आने में आशंका है, तो क्या इस मौके का इस्तेमाल भारतीय कंपनियों को घरेलू स्तर पर ही माल बनाने में नहीं करना चाहिए।
मौके का फायदा उठाने में क्या भारत सक्षम है। ये सवाल भारतीय उद्योगों को खुद से पूछना चाहिए। कुल मिलाकर कोरोना सिर्फ स्वास्थ्य चुनौती के तौर पर ही नहीं एक आर्थिक चुनौती के तौर भी उभरा है। और यह चुनौती विश्व स्तर की है। अब समय है कि इस चुनौती पर विश्व स्तर पर समग्र चिंतन करने की जरूरत है। भारत पहले ही आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहा है। ऐसे में कोरोना जनित संकट अलग ही चिंता का विषय है।
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